योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 135: Difference between revisions
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पुद्गल की अपेक्षा से जीव के औदयिक भावों की उत्पत्ति तथा स्थिति - | <p class="Utthanika">पुद्गल की अपेक्षा से जीव के औदयिक भावों की उत्पत्ति तथा स्थिति -</p> | ||
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उत्पद्यन्ते यथा भावा: पुद्गलापेक्षयात्मन: ।<br> | उत्पद्यन्ते यथा भावा: पुद्गलापेक्षयात्मन: ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- यथा पुद्गलापेक्षया आत्मन: भावा: उत्पद्यन्ते तथा एव तदपेक्षया औदयिका: भावा: विद्यन्ते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- यथा पुद्गलापेक्षया आत्मन: भावा: उत्पद्यन्ते तथा एव तदपेक्षया औदयिका: भावा: विद्यन्ते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- जिसप्रकार पुद्गलात्मक कर्म के उदयादि की अपेक्षा अर्थात् निमित्त पाकर जीव के औदयिकादि भाव उत्पन्न होते हैं; उसीप्रकार पुद्गलरूप कर्म की अपेक्षा अर्थात् उदय के निमित्त से उत्पन्न औदयिक भाव विद्यमान रहते हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जिसप्रकार पुद्गलात्मक कर्म के उदयादि की अपेक्षा अर्थात् निमित्त पाकर जीव के औदयिकादि भाव उत्पन्न होते हैं; उसीप्रकार पुद्गलरूप कर्म की अपेक्षा अर्थात् उदय के निमित्त से उत्पन्न औदयिक भाव विद्यमान रहते हैं । </p> | ||
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Latest revision as of 10:36, 15 May 2009
पुद्गल की अपेक्षा से जीव के औदयिक भावों की उत्पत्ति तथा स्थिति -
उत्पद्यन्ते यथा भावा: पुद्गलापेक्षयात्मन: ।
तथैवौदयिका भावा विद्यन्ते तदपेक्षया ।।१३५।।
अन्वय :- यथा पुद्गलापेक्षया आत्मन: भावा: उत्पद्यन्ते तथा एव तदपेक्षया औदयिका: भावा: विद्यन्ते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार पुद्गलात्मक कर्म के उदयादि की अपेक्षा अर्थात् निमित्त पाकर जीव के औदयिकादि भाव उत्पन्न होते हैं; उसीप्रकार पुद्गलरूप कर्म की अपेक्षा अर्थात् उदय के निमित्त से उत्पन्न औदयिक भाव विद्यमान रहते हैं ।