रज: Difference between revisions
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<p>ध. | <p>ध. 1/1, 1, 1/43/7 <span class="SanskritText">ज्ञानदृगावरणानि रजांसीव बहिरङ्गान्तरङ्गाशेषत्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्म-कवस्तुविषयबोधानुभवप्रतिबन्धकत्वाद्रजांसि । मोहोऽपि रजः भस्मरजसा पूरिताननानामिव भूयो मोहावरुद्धात्मनां जिह्मभावोपलम्भात् । </span>=<span class="HindiText">ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म धूलि की तरह बाह्य और अन्तरंग समस्त त्रिकाल के विषयभूत अनन्त अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्याय स्वरूप वस्तुओं को विषय करने वाले बोध और अनुभव के प्रतिबन्धक होने से रज कहलाते हैं । मोह को भी रज कहते हैं, क्योंकि जिस प्रकार जिनका मुख भस्म से व्याप्त होता है उनमें जिह्म भाव अर्थात् कार्य की मन्दता देखी जाती है, उसी प्रकार मोह से जिनका आत्मा व्याप्त हो रहा है उनके भी जिह्म भाव देखा जाता है । </span></p> | ||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
ध. 1/1, 1, 1/43/7 ज्ञानदृगावरणानि रजांसीव बहिरङ्गान्तरङ्गाशेषत्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्म-कवस्तुविषयबोधानुभवप्रतिबन्धकत्वाद्रजांसि । मोहोऽपि रजः भस्मरजसा पूरिताननानामिव भूयो मोहावरुद्धात्मनां जिह्मभावोपलम्भात् । =ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म धूलि की तरह बाह्य और अन्तरंग समस्त त्रिकाल के विषयभूत अनन्त अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्याय स्वरूप वस्तुओं को विषय करने वाले बोध और अनुभव के प्रतिबन्धक होने से रज कहलाते हैं । मोह को भी रज कहते हैं, क्योंकि जिस प्रकार जिनका मुख भस्म से व्याप्त होता है उनमें जिह्म भाव अर्थात् कार्य की मन्दता देखी जाती है, उसी प्रकार मोह से जिनका आत्मा व्याप्त हो रहा है उनके भी जिह्म भाव देखा जाता है ।