Difference between revisions of "रत्नमुक्तावली"
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
− | <p> एक व्रत । इसमें एक-एक का अंतर देते हुए सोलह अंक तक लिखकर आगे एक-एक अंक कम करते हुए एक अंक तक लिखने के पश्चात् उन अंकों के अनुसार इसमें दो सौ चौरासी उपवास और उनसठ पारणाएँ की जाती है । इसमें कुल तीन सौ तैंतालीस दिन लगते हैं । रत्नत्रय प्राप्ति इसका फल है । प्रस्तार क्रम निम्न प्रकार बनाया जाता है― 1, 1, 2, 1, 3, 1, 4, 1, 5, 1, 6, 1, 7, 1, 8, 1, 9, 1, 10, 1, 11, 1, 12, 1, 13, 1, 14, 1, 15, 1, 16, 1, 15, 1, 14, 1, 13, 1, 12, 1, 11, 1, 10, 1, 9, 1, 8, 1, 7, 1, 6, 1, 5, 1, 4, 1, 3, 1, 2, 1, 1, 1, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.72-73 </span></p> | + | <div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें एक-एक का अंतर देते हुए सोलह अंक तक लिखकर आगे एक-एक अंक कम करते हुए एक अंक तक लिखने के पश्चात् उन अंकों के अनुसार इसमें दो सौ चौरासी उपवास और उनसठ पारणाएँ की जाती है । इसमें कुल तीन सौ तैंतालीस दिन लगते हैं । रत्नत्रय प्राप्ति इसका फल है । प्रस्तार क्रम निम्न प्रकार बनाया जाता है― 1, 1, 2, 1, 3, 1, 4, 1, 5, 1, 6, 1, 7, 1, 8, 1, 9, 1, 10, 1, 11, 1, 12, 1, 13, 1, 14, 1, 15, 1, 16, 1, 15, 1, 14, 1, 13, 1, 12, 1, 11, 1, 10, 1, 9, 1, 8, 1, 7, 1, 6, 1, 5, 1, 4, 1, 3, 1, 2, 1, 1, 1, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.72-73 </span></p> |
− | + | </div> | |
<noinclude> | <noinclude> |
Latest revision as of 16:57, 14 November 2020
एक व्रत । इसमें एक-एक का अंतर देते हुए सोलह अंक तक लिखकर आगे एक-एक अंक कम करते हुए एक अंक तक लिखने के पश्चात् उन अंकों के अनुसार इसमें दो सौ चौरासी उपवास और उनसठ पारणाएँ की जाती है । इसमें कुल तीन सौ तैंतालीस दिन लगते हैं । रत्नत्रय प्राप्ति इसका फल है । प्रस्तार क्रम निम्न प्रकार बनाया जाता है― 1, 1, 2, 1, 3, 1, 4, 1, 5, 1, 6, 1, 7, 1, 8, 1, 9, 1, 10, 1, 11, 1, 12, 1, 13, 1, 14, 1, 15, 1, 16, 1, 15, 1, 14, 1, 13, 1, 12, 1, 11, 1, 10, 1, 9, 1, 8, 1, 7, 1, 6, 1, 5, 1, 4, 1, 3, 1, 2, 1, 1, 1, हरिवंशपुराण 34.72-73