राजसदान: Difference between revisions
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देखें [[ दान ]]। | <span class="GRef"> सागार धर्मामृत/5/47 में उद्धृत</span>–<span class="SanskritText">आतिथेयं हितं यत्र यत्र पात्रपरीक्षणं। गुणा: श्रद्धादयो यत्र तद्दानं सात्त्विकं विदु:। यदात्मवर्णनप्रायं क्षणिकाहार्यविभ्रमं। परप्रत्ययसंभूतं दानं तद्राजसं मतं। पात्रापात्रसमावेक्षमसत्कारमसंस्तुतं। दासभृत्यकृतोद्योगं दानं तामसमूचिरे। </span>=<span class="HindiText">जिस दान में अतिथि का कल्याण हो, जिसमें पात्र की परीक्षा वा निरीक्षण स्वयं किया गया हो और जिसमें श्रद्धादि समस्त गुण हों उसे सात्त्विक दान कहते हैं। जो दान केवल अपने यश के लिए किया गया हो, जो थोड़े समय के लिए ही सुंदर और चकित करने वाला हो और दूसरे से दिलाया गया हो उसको '''राजस दान''' कहते हैं। जिसमें पात्र अपात्र का कुछ ख्याल न किया गया हो, अतिथि का सत्कार न किया गया हो, जो निंद्य हो और जिसके सब उद्योग दास और सेवकों से कराये गये हों, ऐसे दान को तामसदान कहते हैं। </span> | ||
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Latest revision as of 16:06, 16 August 2023
सागार धर्मामृत/5/47 में उद्धृत–आतिथेयं हितं यत्र यत्र पात्रपरीक्षणं। गुणा: श्रद्धादयो यत्र तद्दानं सात्त्विकं विदु:। यदात्मवर्णनप्रायं क्षणिकाहार्यविभ्रमं। परप्रत्ययसंभूतं दानं तद्राजसं मतं। पात्रापात्रसमावेक्षमसत्कारमसंस्तुतं। दासभृत्यकृतोद्योगं दानं तामसमूचिरे। =जिस दान में अतिथि का कल्याण हो, जिसमें पात्र की परीक्षा वा निरीक्षण स्वयं किया गया हो और जिसमें श्रद्धादि समस्त गुण हों उसे सात्त्विक दान कहते हैं। जो दान केवल अपने यश के लिए किया गया हो, जो थोड़े समय के लिए ही सुंदर और चकित करने वाला हो और दूसरे से दिलाया गया हो उसको राजस दान कहते हैं। जिसमें पात्र अपात्र का कुछ ख्याल न किया गया हो, अतिथि का सत्कार न किया गया हो, जो निंद्य हो और जिसके सब उद्योग दास और सेवकों से कराये गये हों, ऐसे दान को तामसदान कहते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें दान ।