वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-24
From जैनकोष
ब्रतशीलेषु पंच-पंच यथाक्रमम् ।। 5-24 ।।
(192) व्रत और शीलों के पाँच-पांच अतिचार कहे जाने का निर्देश―व्रत और शीलों के क्रम से 5-5 अतिचार होते हैं, जो कि क्रम से कहे जायेंगे । व्रत बताये ही गए थे―अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । शील भी 7, बताये गए हैं―(1) दिग्व्रत, (2) देशव्रत (3) अनर्थदंडव्रत (4) सामायिक (5) प्रोषधोपवास (6) भोगोपभोगपरिमाण और (7) अतिथिसम्विभाग । इन व्रत और शीलों में 5-5 अतिचार बताये जायेंगे । यहाँ एक शंकाकार कहता है कि 5 व्रत और 7 शील ये सब 12 व्रत ही तो हैं इसलिए यहाँ वृत्तेषु इतना ही शब्द दिया जाता । शील शब्द कहने की क्या आवश्यकता है? सूत्र भी लघु हो जाता । दिग्व्रत आदिक में भी तो संकल्पपूर्वक नियम लिया गया है इसलिए वह भी व्रत कहलाता है । और फिर 7 शीलों के वर्णन में जो सूत्र आया है उस सूत्र में 7 के नाम लेकर अंत में व्रतसंपन्न: यह शब्द दिया गया है । सो वे सब व्रत ही हैं । तब सूत्र में व्रतेषु इतना ही कहना चाहिए था । इस शंका के उत्तर में कहते हैं कि यहाँ शील विशेष को एकदम स्पष्ट करने के लिए शील शब्द लिख रहे हैं । यद्यपि अनिसधिपूर्वक । नियम करना व्रत कहलाता है, इस दृष्टि से दिग्व्रत आदिक भी व्रत ही हैं, किंतु प्रधान जो 5 व्रत कहे गए हैं अहिंसा आदिक उन व्रतों की रक्षा करने वाला शील होता है । ऐसा विशेष प्रकट करने के लिए शील शब्द का ग्रहण किया गया है । और इसी कारण दिग्व्रत आदिक शील शब्द से ग्रहण किए गए । तब सूत्र का अर्थ हुआ 5 व्रत में और 7 शीलों में 5-5 अतिचार कहे जायेंगे । इस प्रकरण में यह सब गृहस्थों के व्रत का ज्ञान करा रहे हैं । व्रतों का प्रकरण होने पर भी मुनियों के लिए ये अतिचार नही कहे जा रहे, वे तो इन गृहस्थ व्रतों में भी ऊपर उठे हुए है, सिर्फ गृहस्थ के लिए ये अतिचार कहे जा रहे हैं क्योंकि आगे जो अतिचारों के नाम आयेंगे, जैसे पशुओं का पीटना बांधना, उन पर बोझा लादना यह बात मुनियों के कभी संभव ही नहीं है । गृहस्थजनों के संभव हो सकती इस कारण ये सब गृहस्थ के ही अतिचार हैं, मुनिव्रत में अतिचार नहीं हैं ।
(193) सूत्रोक्त विशिष्ट शब्दों की सार्थकता―इस सूत्र में पंच-पंच शब्द दो बार कहे गए । इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्रतों में 5-5 अतिचार होते हैं । यद्यपि एक पंच शब्द कह कर ही उसमें सस प्रत्यय लगाकर पंचस: इतना ही कह दिया जाता, दो पंच शब्द न कहने पड़ते, ऐसा भी संभव हो सकता था, मगर उससे सही स्पष्टीकरण नही हो पाता और पंच-पंच इस तरह शब्द बोलने से एकदम स्पष्ट अर्थ निकलता है कि प्रत्येक व्रतों में 5-5 अतिचार होते हैं । इस सूत्र में यथाक्रमम् शब्द देने का भाव यह है कि आगे जो भी अतिचार कहे जायेंगे उनमें व्रतों के नाम न दिये जायेंगे सो उन व्रतों के नाम अपने आप क्रम से लगा लेना चाहिए । इस प्रकार आगे कहे जानें वाले बारह व्रतों के अतिचारों का एक प्रकरणरूप सूत्र कहा गया है । अब प्रथम अहिंसाणुव्रत के अतिचार बतला रहे हैं । जिन अतिचारों से भी अगर गृहस्थ हट जाये तो उसका अहिंसाणुव्रत निरपवाद हो जाता है, वह अतिचार यह है ।