विजयावली: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> काकंदी नगरी के राजा रतिवर्धन के मंत्री सर्वगुप्त की स्त्री । इसने राजा को मारने का मंत्री का कूट रहस्य राजा से प्रकट कर दिया था । यह मंत्री की अपेक्षा राजा को अधिक चाहती थी । इसके कहने से राजा सावधान रहने लगा । इसके राजा से भेद प्रकट कर देने से इसका पति इससे द्वेष करने लगा । फलस्वरूप देह न तो राजा की हो सकी और न पति की ही यह ज्ञान इसे होते ही इसने शोकमुक्त होकर अकाम तप किया । आयु के अंत में यह मरकर राक्षसी हुई । तीव्र वैर-वश इसने रतिवर्धन पर उसकी मुनि अवस्था में घोर उपसर्ग किये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 108.7- | <div class="HindiText"> <p> काकंदी नगरी के राजा रतिवर्धन के मंत्री सर्वगुप्त की स्त्री । इसने राजा को मारने का मंत्री का कूट रहस्य राजा से प्रकट कर दिया था । यह मंत्री की अपेक्षा राजा को अधिक चाहती थी । इसके कहने से राजा सावधान रहने लगा । इसके राजा से भेद प्रकट कर देने से इसका पति इससे द्वेष करने लगा । फलस्वरूप देह न तो राजा की हो सकी और न पति की ही यह ज्ञान इसे होते ही इसने शोकमुक्त होकर अकाम तप किया । आयु के अंत में यह मरकर राक्षसी हुई । तीव्र वैर-वश इसने रतिवर्धन पर उसकी मुनि अवस्था में घोर उपसर्ग किये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#7|पद्मपुराण - 108.7-1]]1, 35-38 </span></p> | ||
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Revision as of 22:35, 17 November 2023
काकंदी नगरी के राजा रतिवर्धन के मंत्री सर्वगुप्त की स्त्री । इसने राजा को मारने का मंत्री का कूट रहस्य राजा से प्रकट कर दिया था । यह मंत्री की अपेक्षा राजा को अधिक चाहती थी । इसके कहने से राजा सावधान रहने लगा । इसके राजा से भेद प्रकट कर देने से इसका पति इससे द्वेष करने लगा । फलस्वरूप देह न तो राजा की हो सकी और न पति की ही यह ज्ञान इसे होते ही इसने शोकमुक्त होकर अकाम तप किया । आयु के अंत में यह मरकर राक्षसी हुई । तीव्र वैर-वश इसने रतिवर्धन पर उसकी मुनि अवस्था में घोर उपसर्ग किये थे । पद्मपुराण - 108.7-11, 35-38