सिंहकेतु: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) विद्याधर-वंश का नृप । यह राजा सिंहसप्रभु का पुत्र तथा राजा शशांकमुख का पिता था । पद्मपुराण 5.50</p> | <p id="1"> (1) विद्याधर-वंश का नृप । यह राजा सिंहसप्रभु का पुत्र तथा राजा शशांकमुख का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.50 </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के राजा प्रभंजन और रानी | <p id="2">(2) भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के राजा प्रभंजन और रानी मृकण्डु का पुत्र । इसका विवाह इसी देश ने वस्वालय नगर के राजा वज्रचाप की पुत्री विद्युन्माला के साथ हुआ था । चम्पापुर के राजा चन्द्रकीर्ति के बिना पुत्र के मरने पर मंत्रियों ने इसे अपना राजा बनाया था । मृकण्डु का पुत्र होने से चम्पापुर की प्रजा इसे ‘‘मार्कण्डेय’’ कहती थी । शौर्यपुर नगर के राजा शूरसेन इसी के वंश में हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70.75-93, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.118-131 </span></p> | ||
<p id="3">(3) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । यह सिंह पर्याय में अजितंजय मुनि से उपदेश सुनकर तथा श्रावक के व्रतों को पालते हुए देह त्यागकर सौधर्म स्वर्ग में इस नाम का देव हुआ था । महापुराण 74.173-219, 76.540, वीरवर्द्धमान चरित्र 4.2-59</p> | <p id="3">(3) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । यह सिंह पर्याय में अजितंजय मुनि से उपदेश सुनकर तथा श्रावक के व्रतों को पालते हुए देह त्यागकर सौधर्म स्वर्ग में इस नाम का देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 74.173-219, 76.540, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 4.2-59 </span></p> | ||
Revision as of 21:48, 5 July 2020
(1) विद्याधर-वंश का नृप । यह राजा सिंहसप्रभु का पुत्र तथा राजा शशांकमुख का पिता था । पद्मपुराण 5.50
(2) भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के राजा प्रभंजन और रानी मृकण्डु का पुत्र । इसका विवाह इसी देश ने वस्वालय नगर के राजा वज्रचाप की पुत्री विद्युन्माला के साथ हुआ था । चम्पापुर के राजा चन्द्रकीर्ति के बिना पुत्र के मरने पर मंत्रियों ने इसे अपना राजा बनाया था । मृकण्डु का पुत्र होने से चम्पापुर की प्रजा इसे ‘‘मार्कण्डेय’’ कहती थी । शौर्यपुर नगर के राजा शूरसेन इसी के वंश में हुआ था । महापुराण 70.75-93, पांडवपुराण 7.118-131
(3) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । यह सिंह पर्याय में अजितंजय मुनि से उपदेश सुनकर तथा श्रावक के व्रतों को पालते हुए देह त्यागकर सौधर्म स्वर्ग में इस नाम का देव हुआ था । महापुराण 74.173-219, 76.540, वीरवर्द्धमान चरित्र 4.2-59