सुखसंपत्ति व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 16:15, 25 April 2016
इस व्रत की विधि तीन प्रकार से कही है-उत्तम, मध्यम व जघन्य। उत्तमविधि-१५ महीने तक १ पडिमा, २ दोज, ३ तीज, ४ चौथ, ५ पंचमी, ६ छठ, ७ सप्तमी, ८ अष्टमी, ९ नवमी, १० दशमी, ११ एकादशी, १२ द्वादशी, १३ त्रयोदशी, १४ चतुर्दशी, १५ पूर्णिमा, १५ अमावस्या; इस प्रकार कुल १३५ दिन के लगातार १३५ उपवास उन तिथियों में पूरे करे। (व्रत.वि.सं. में १३५ के बजाय १२० उपवास बताये हैं, क्योंकि वहाँ पन्द्रह का विकल्प एक बार लिया है। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे। (वसु.श्रा./३६८-३७२); (व्रत विधान सं./पृ.६६) (किशनसिंह क्रियाकोष) मध्यमविधि-उपरोक्त ही १२० उपवास तिथियों से निरपेक्ष पाँच वर्ष में केवल प्रतिमास की पूर्णिमा और अमावस्या को पूरे करे। तथा नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रत विधान सं./६७); (किशनसिंह क्रियाकोष) जघन्यविधि-जिस किसी भी मास की कृ.१ से शु.१ तक १६ उपवास लगातार करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य। (व्रतविधान सं./पृ.६७); (किशनसिंह क्रियाकोष)।