सूत्रपाहुड गाथा 22
From जैनकोष
आगे तीसरा लिंग स्त्री का कहते हैं -
लिंगं इत्थीण हवदि भुंजइ पिंड सुएयकालम्मि ।
अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेदि ।।२२।।
लिंगं स्त्रीणां भवति भुंक्ते पिंडं स्वेक काले ।
आर्या अपि एकवस्त्रा वस्त्रावरणेन भुंक्ते ।।२२।।
अर नारियों का लिंग तीजा एक पट धारण करें ।
वह नग्न ना हो दिवस में इकबार ही भोजन करें ।।२२।।
अर्थ - स्त्रियों का लिंग इसप्रकार है - एक काल में भोजन करे, बारबार भोजन नहीं करे, आर्यिका भी हो तो एक वस्त्र धारण करे और भोजन करते समय भी वस्त्र के आवरण सहित करे, नग्न नहीं हो ।
भावार्थ - स्त्री आर्यिका भी हो और क्षुल्लिका भी हो, वे दोनों ही भोजन तो दिन में एकबार ही करे, आर्यिका हो वह एक वस्त्र धारण किये हुए ही भोजन करे, नग्न नहीं हो । इसप्रकार तीसरा स्त्री का लिंग है ।।२२।।