स्थूलभद्र: Difference between revisions
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Revision as of 16:15, 25 April 2016
आचार्य भद्रबाहु प्रथम (पंचम श्रुतकेवली) के शिष्य थे। १२ वर्षीय दुर्भिक्ष के अवसर पर आपने उनकी बात को अस्वीकार करके दक्षिण की ओर विहार न किया और उज्जैनी में ही रह गये। दुर्भिक्ष आने पर उनके संघ में शिथिलाचार आया और वे ‘अर्ध फालक’ (देखें - श्वेताम्बर ) बन गये। भद्रबाहु स्वामी की दक्षिण में समाधि हो गयी, परन्तु दुर्भिक्ष के समाप्त होने पर उनके शिष्य विशाखत्त्चार्य आदि लौटकर पुन: उज्जैनी में आये। उस समय आप (स्थूल भद्र) ने अपने संघ को शिथिलाचार छोड़ पुन: शुद्धाचरण अपनाने को कहा। इस पर संघ ने रुष्ट होकर इन्हें जान से मार दिया। ये एक व्यन्तर बनकर संघ पर उपद्रव करने लगे। जिसे शान्त करने के लिए संघ ने कुलदेवता के रूप में इनकी पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। इनके अपर नाम स्थूलाचार्य व रामल्य भी थे। इस कथा के अनुसार इनका समय भद्रबाहु तृतीय से लेकर विशाखाचार्य के कुछ काल पश्चात् तक वी.नि.१३३-१६७ (ई.पू.३९४-३६०) आता है।-देखें - श्वेताम्बर ।