हरिक्षेत्र
From जैनकोष
- रा.वा./३/१०/८/१७२/२७ हरि: सिंहस्तस्य शुक्लरूपपरिणामित्वात् तद्वर्णमनुष्याद्यषितत्वाद्धरिवर्ष: इत्याख्यायते। =हरि अर्थात् सिंह के समान शुक्ल रूपवाले मनुष्य इसमें रहते हैं अत: यह हरिवर्ष कहलाता है। (यह अढ़ाई द्वीपों में प्रसिद्ध तीसरा क्षेत्र है)।
- इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि- देखें - लोक / ३ / ३ ।
- इस क्षेत्र में काल वर्तन आदि सम्बन्धी विशेषताएँ- देखें - काल / ४ / १५ ।