हिमवत्: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(6 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
कुंडल पर्वतस्थ एक | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText">कुंडल पर्वतस्थ एक कूट। - विशेष जानकारी के लिए देखें [[ लोक#5.12 | लोक - 5.12]]।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) भरतक्षेत्र का प्रथम कुलाचल । इसकी ऊँचाई सौ योजन, गहराई पच्चीस योजन, और | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) भरतक्षेत्र का प्रथम कुलाचल । इसकी ऊँचाई सौ योजन, गहराई पच्चीस योजन, और चौड़ाई एक हजार बावन योजन तथा बारह कला प्रमाण है । इसकी प्रत्यंचा चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन तथा कुछ कम एक कला प्रमाण, बाण एल हजार पाँच सौ अठहत्तर योजन अठारह कला प्रमाण, चूलिका पाँच हजार दो सौ तीस योजन कुछ अधिक सात कला प्रमाण तथा पूर्व पश्चिम दोनों भुजाओं का विस्तार पाँच हजार तीन सौ पचास योजन साढ़े पंद्रह भाग है । वह स्वर्णमय है । इस के ग्यारह कूट हैं― 1. सिद्धायतनकूट 2. हिमवतकूट 3. भरतकूट 4. इलाकूट 5. गंगाकूट 6. श्रीकूट 7. रोहितकूट 8. सिंधुकूट 9. सुरादेवीकूट 10. हैमवतकूट 11. वैश्रवणकूट । ये कूट मूल में पच्चीस योजन, मध्य में पौने उन्नीस योजन और साढ़े बारह योजन विस्तृत है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#45|हरिवंशपुराण - 5.45-56]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) इसी कुलाचल का दूसरा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.53 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) इसी कुलाचल का दूसरा कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#53|हरिवंशपुराण - 5.53]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) समुद्रविजय का भाई । इसके विद्युत्प्रभ, माल्यवान् और गंधमादन ये तीन पुत्र थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.47 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) समुद्रविजय का भाई । इसके विद्युत्प्रभ, माल्यवान् और गंधमादन ये तीन पुत्र थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#47|हरिवंशपुराण - 48.47]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 25: | Line 26: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ह]] | [[Category: ह]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 20:01, 16 February 2024
सिद्धांतकोष से
कुंडल पर्वतस्थ एक कूट। - विशेष जानकारी के लिए देखें लोक - 5.12।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र का प्रथम कुलाचल । इसकी ऊँचाई सौ योजन, गहराई पच्चीस योजन, और चौड़ाई एक हजार बावन योजन तथा बारह कला प्रमाण है । इसकी प्रत्यंचा चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन तथा कुछ कम एक कला प्रमाण, बाण एल हजार पाँच सौ अठहत्तर योजन अठारह कला प्रमाण, चूलिका पाँच हजार दो सौ तीस योजन कुछ अधिक सात कला प्रमाण तथा पूर्व पश्चिम दोनों भुजाओं का विस्तार पाँच हजार तीन सौ पचास योजन साढ़े पंद्रह भाग है । वह स्वर्णमय है । इस के ग्यारह कूट हैं― 1. सिद्धायतनकूट 2. हिमवतकूट 3. भरतकूट 4. इलाकूट 5. गंगाकूट 6. श्रीकूट 7. रोहितकूट 8. सिंधुकूट 9. सुरादेवीकूट 10. हैमवतकूट 11. वैश्रवणकूट । ये कूट मूल में पच्चीस योजन, मध्य में पौने उन्नीस योजन और साढ़े बारह योजन विस्तृत है । हरिवंशपुराण - 5.45-56
(2) इसी कुलाचल का दूसरा कूट । हरिवंशपुराण - 5.53
(3) समुद्रविजय का भाई । इसके विद्युत्प्रभ, माल्यवान् और गंधमादन ये तीन पुत्र थे । हरिवंशपुराण - 48.47