• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

सर्वार्थसिद्धि

From जैनकोष

Revision as of 16:58, 14 November 2020 by Maintenance script (talk | contribs) (Imported from text file)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
 Share 



(1) पाँच अनुत्तर विमानों में विद्यमान एक इंद्रक विमान । यह अनुत्तर विमानों के बीच में होता है । इसकी पूर्व आदि चार दिशाओं में विजय, जयंत, जयंत और अपराजित ये चार विमान स्थित है । यह नौ ग्रैवेयक विमानों के ऊपर रहता है । यहाँ देवों की ऊँचाई एक हाथ की होती है । वे प्रवीचार रहित होते हैं । यह विमान लोक के अंत भाग से बारह योजन नीचा है । इसकी लंबाई, चौड़ाई और गोलाई जंबूद्वीप के बराबर है । यह स्वर्ग के त्रेमठ पटलों के अंत में स्थित है । इस विमान में उत्पन्न होनेवाले जीवों के सब मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं । महापुराण 11. 112-114, 61.12, पद्मपुराण 105.170-171 हरिवंशपुराण 4.69, 6. 54, 65

(2) एक पालकी । तीर्थंकर शांतिनाथ इसी में बैठकर संयम धारने करने सहस्राम्र वन गये थे । महापुराण 63.470


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=सर्वार्थसिद्धि&oldid=78521"
Categories:
  • पुराण-कोष
  • स
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 14 November 2020, at 16:58.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki