• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

इंद्रभूति

From जैनकोष

Revision as of 16:52, 14 November 2020 by Maintenance script (talk | contribs) (Imported from text file)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
 Share 



सिद्धांतकोष से

पूर्व भवमें आदित्य विमानमें देव थे। ( महापुराण सर्ग संख्या 74/357) यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। वेदपाठी थे। भगवान् वीरके समवशरणमें मानस्तंभ देखकर मानभंग हो गया और 500 शिष्योंके साथ दीक्षा धारण कर ली। तभी सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं ( महापुराण सर्ग संख्या 74/366-370)। भगवान् महावीरके प्रथम गणधर थे। ( महापुराण सर्ग संख्या 74/356-372)। आपको श्रावक कृष्ण 1 के पूर्वह्ण कालमें श्रुतज्ञान जागृत हुआ था। उसी तिथिको पूर्व रात्रिमें आपने अंगोकी रचना करके सारे श्रुतको आगम निबद्ध कर दिया। ( महापुराण सर्ग संख्या 74/369-372)। कार्तिक कृ. 15 को आपको केवलज्ञान प्रगट हुआ और विपुलाचल पर आपने निर्वाण प्राप्त किया।

( महापुराण सर्ग संख्या 66/515-516)।


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ


पुराणकोष से

(1) मगधदेश के अचलग्रामवासी घरणीजट ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, अग्निभूति का सहोदर । महापुराण 62. 325-326

(2) गौतम गोत्रीय महाभिमानी वेदपाठी-ब्राह्मण । भगवान् महावीर के समवसरण में मानस्तंभ देखकर इनका मानभंग हो गया था । इन्होंने अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा धारण की थी । तप करके इन्होंने सात ऋद्धियों प्राप्त की थी । महावीर के ये प्रथम गणधर हुए । श्रावण कृष्णा एकम के पूर्वाह्न में ये श्रुतज्ञानी हुए और उसी तिथि को पूर्व रात्रि में इन्होंने संपूर्ण स्वत को आगम के रूप में निबद्ध कर दिया था । इनका दूसरा नाम गौतम है । सुधर्माचार्य ने इनसे ही श्रुत प्राप्त किया था । इंद्र द्वारा पूजित होने से इनको यह नाम मिला था । अंत में विपुलाचल पर्वत पर इन्होंने मोक्ष पाया था । महापुराण 2.53, 74.356-372, 76.507-517, पद्मपुराण 1.41 हरिवंशपुराण 1.60, 3.41, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.159-160


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=इंद्रभूति&oldid=72489"
Categories:
  • इ
  • पुराण-कोष
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 12 January 2023, at 13:32.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki