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जिनगुण संपत्ति व्रत

From जैनकोष

Revision as of 15:12, 6 September 2022 by ShrutiJain (talk | contribs)
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इस व्रत की तीन विधि है–उत्तम, मध्यम व जघन्य,

  1. उत्तम विधि―अर्हंत भगवान् के
    1. जन्म के 10 अतिशयों की 10 दशमियाँ;
    2. केवलज्ञान के 10 अतिशयों की दश दशमियाँ;
    3. देवकृत 14 अतिशयों की 14 चतुर्दशियाँ;
    4. 8 प्रातिहार्यों की 8 अष्टमियाँ;
    5. षोडशकारण भावनाओं की 16 प्रतिपदाएँ;
    6. पाँच कल्याणकों की 5 पंचमियाँ; इस प्रकार 63 तिथियों के 63 उपवास 10 मास में पूरे करे। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। ( हरिवंशपुराण/34/122 ); (व्रत विधान संग्रह/पृ.64); (किशनसिंह क्रियाकोश)।
  2. मध्यम विधि–66 दिन में निम्नक्रम से 36 उपवास व 30 पारणा करे। ‘ओं ह्रीं अर्हंत परमेष्ठिने नम:’ इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। क्रम–(;व,) के स्थान पर पारणा समझना–2,1,1,1,1,1;2,1,1,1,1,1;2,1,1,1,1,1; 2,1,1,1,1,1;2,1,1,1,1,1। (वर्द्धमान पुराण); (व्रत विधान संग्रह/पृ.65)।
  3. जघन्य विधि–उपरोक्त 63 गुणों के उपलक्ष्य में 63 दिन तक एकाशना करे। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। (व्रत विधान संग्रह/पृ.66); (किशन सिंह क्रियाकोश)।


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