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जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

नव नारद निर्देश

From जैनकोष

Revision as of 14:29, 28 September 2022 by Vikasnd (talk | contribs)
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नव नारद निर्देश

1. वर्तमान नारदों का परिचय

क्रम

1. नाम निर्देश

2. उत्सेध

3. आयु

4.वर्तमान काल

5. निर्गमन

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1469

2. त्रिलोकसार/ 834

3. हरिवंशपुराण/60/548

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1471

हरिवंशपुराण/60/ 549

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1471

2. हरिवंशपुराण/60/549

1. त्रिलोकसार/ 835

2. हरिवंशपुराण/60/

549

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1470

2. त्रिलोकसार/ 835

3. हरिवंशपुराण/60/557

1

2

सामान्य

विशेष

1

भीम

 

उपदेश उपलब्ध नहीं है।

तात्कालिक नारायणों के तुल्य है।

उपदेश उपलब्ध नहीं है।

तात्कालिक नारायणों के तुल्य है।

नारायणों के समय में ही होते हैं।

नारायणोंवत् नरकगति को प्राप्त होते हैं।

महाभव्य होने के कारण परंपरा से मुक्त होते हैं।

2

महाभीम

 

3

रुद्र

 

4

महारुद्र

 

5

काल

 

6

महाकाल

 

7

दुर्मुख

चतुर्मुख

8

नरकमुख

नरवक्त्र

9

अधोमुख

उन्मुख


2. नारदों संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1470 रुद्दावइ अइरुद्दा पावणिहाणा हवंति सव्वे दे। कलह महाजुज्झपिया अधोगया वासुदेव व्व।1470।

ये सब अतिरुद्र होते हुए दूसरों को रुलाया करते हैं और पाप के निधान होते हैं। सभी नारद कलह एवं महायुद्ध प्रिय होने से वासुदेव के समान अधोगति अर्थात् नरक को प्राप्त हुए।1470।

पद्मपुराण/11/116-266 ब्रह्मरुचिस्तस्य कूर्मी नाम कुटुंबिनी (117) प्रसूता दारकं शुभं।145। यौवनं च...।153। ...प्राप्य क्षुल्लकचारित्रं जटामुकुटकुद्वहन् ...।155। कंदर्पकौत्कुच्यमौखर्य्यात्यंतवत्सल...।156। उवाचेति मरुत्वंच किं प्रारब्धमिदं नृप। हिंसन् ...प्राणिवर्गस्य द्वारं...।161। नारदोऽपि तत: कांश्चिन्मुष्टिमुद्गरताडनै:...।257। श्रुत्वा रावण: कोपमागत:...।264। व्यमोचयन् दयायुक्ता नारदं शत्रपंजरात् ।266। = ब्रह्मरुचि ब्राह्मण ने तापस का वेश धारण करके इसको (नारद को) उत्पन्न किया था। यौवन अवस्था में ही क्षुल्लक के व्रत लिये।153। कंदर्प व कौत्कुच्य प्रेमी था।156। मरुत्वान् यज्ञ में शास्त्रार्थ करने के कारण (160) पीटा गया।256। रावण ने उस समय रक्षा की।266। ( हरिवंशपुराण/42/14-23 ) ( महापुराण/67/359-455 )।

त्रिलोकसार/835 कलहप्पिया कदाइंधम्मरदा वासुदेव समकाला। भव्वा णिरयगदिं ते हिंसादोसेण गच्छंति।835। = ये नारद कलह प्रिय हैं, परंतु कदाचित् धर्म में भी रत होते हैं। वासुदेवों (नारायणों) के समय में ही होते हैं। यद्यपि भव्य होने के कारण परंपरा से मुक्ति को प्राप्त करते हैं, परंतु हिंसादोष के कारण नरक गति को जाते हैं।835। ( हरिवंशपुराण/60/549-550 )।


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