प्रथमानुयोग: Difference between revisions
From जैनकोष
(Created page with "<big><big>'''प्रथमानुयोग'''</big></big> में आने वाले विविध विषय और उनके पेज") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
< | <p class='HindiText' id="1.2.1"> | ||
== प्रथमानुयोग का लक्षण == | |||
</p> | |||
<p class="SanskritText">रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 43 प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्। बोधिसमाधिनिधानं बोधातिबोधः समीचीनः ॥43॥ </p> | |||
<p class="HindiText">= सम्यग्ज्ञान है सो परमार्थ विषय का अथवा धर्म, अर्थ, काम मोक्ष का अथवा एक पुरुष के आश्रय कथा का अथवा त्रेसठ पुरुषों के चरित्र का अथवा पुण्य का अथवा रत्नत्रय और ध्यान का है कथन जिसमें सो प्रथमानुयोग रूप शास्त्र जानना चाहिए। </p> | |||
<p>( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/9/258)।</p> | |||
<p class="SanskritText">हरिवंश पुराण सर्ग 10/71 पदैः पंचसहस्रैस्तु प्रयुक्ते प्रथमे पुनः। अनुयोगे पुराणार्थस्त्रिषष्टिरुपवर्ण्यते ॥71॥ </p> | |||
<p class="HindiText">= दृष्टिवाद के तीसरे भेद अनुयोगमें पाँच हजार पद हैं तथा इसके अवांतर भेद प्रथमानुयोगमें त्रेसठ शलाका पुरुषों के पुराण का वर्णन है ॥71॥ </p> | |||
<p>( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/103/138) ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या./361-362/773/3) ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/8) (पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/254/15)।</p> | |||
<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 2/1,1,2/1,1,2/4 पढमाणियोगो पंचसहस्सपदेहि पुराणं वण्णेदि। </p> | |||
<p class="HindiText">= प्रथमानुयोग अर्थाधिकार पाँच हजार पदों के द्वारा पुराणों का वर्णन करता है।</p> |
Latest revision as of 13:15, 2 August 2022
प्रथमानुयोग का लक्षण
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 43 प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्। बोधिसमाधिनिधानं बोधातिबोधः समीचीनः ॥43॥
= सम्यग्ज्ञान है सो परमार्थ विषय का अथवा धर्म, अर्थ, काम मोक्ष का अथवा एक पुरुष के आश्रय कथा का अथवा त्रेसठ पुरुषों के चरित्र का अथवा पुण्य का अथवा रत्नत्रय और ध्यान का है कथन जिसमें सो प्रथमानुयोग रूप शास्त्र जानना चाहिए।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/9/258)।
हरिवंश पुराण सर्ग 10/71 पदैः पंचसहस्रैस्तु प्रयुक्ते प्रथमे पुनः। अनुयोगे पुराणार्थस्त्रिषष्टिरुपवर्ण्यते ॥71॥
= दृष्टिवाद के तीसरे भेद अनुयोगमें पाँच हजार पद हैं तथा इसके अवांतर भेद प्रथमानुयोगमें त्रेसठ शलाका पुरुषों के पुराण का वर्णन है ॥71॥
( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/103/138) ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या./361-362/773/3) ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/8) (पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/254/15)।
धवला पुस्तक 2/1,1,2/1,1,2/4 पढमाणियोगो पंचसहस्सपदेहि पुराणं वण्णेदि।
= प्रथमानुयोग अर्थाधिकार पाँच हजार पदों के द्वारा पुराणों का वर्णन करता है।
Pages in category "प्रथमानुयोग"
The following 200 pages are in this category, out of 5,090 total.
(previous page) (next page)क
- कुमुदवती
- कुमुदामेलक
- कुमुदावती
- कुमुदावर्त
- कुमुद्धती
- कुमुमामोद
- कुरंग
- कुरु
- कुरुक्षेत्र
- कुरुचंद्र
- कुरुजांगल
- कुरुध्वज
- कुरुमती
- कुरुवंश
- कुरुविंद
- कुरुविंदा
- कुर्यधर
- कुर्यवर
- कुर्युधर
- कुलंकर
- कुलंधर
- कुलकर
- कुलकीर्ति
- कुलधर
- कुलपत्र
- कुलपुत्र
- कुलभूषण
- कुलवर्धन
- कुलवांता
- कुलवाणिज
- कुलविद्या
- कुलसुत
- कुलानुपालन
- कुलाल
- कुलित्य
- कुलिश
- कुवली
- कुविंद
- कुश
- कुशद्य
- कुशध्वज
- कुशपुर
- कुशलमति
- कुशसेन
- कुशस्थलक
- कुशाग्र
- कुशाग्रगिरि
- कुशाग्रनगर
- कुशार्थ
- कुसंध्य
- कुसुंभ
- कुसुमकोमला
- कुसुमचित्रा
- कुसुमपुर
- कुसुमवती
- कुसुमश्री
- कुसुमावली
- कुहर
- कुहा
- कूटनाटक
- कूटागार
- कूटाद्रि
- कूर्मी
- कूल
- कूवर
- कृतचित्रा
- कृतमाल
- कृतयुग
- कृतलक्षण
- कृतवर्मा
- कृतवीर
- कृतांत
- कृतांतवक्त्र
- कृतार्थ
- कृतिधर्म
- कृप
- कृपवर्मा
- कृरुराज
- कृष्ण
- कृष्ण गंगा
- कृष्णगिरि
- कृष्णमति
- कृष्णवेणा
- कृष्णा
- कृष्णाचार्य
- केकया
- केकयी
- केकसी
- केतंबा
- केतु
- केतुमति
- केतुमती
- केतुमल
- केतुमाली
- केयूर
- केलीकिल
- केशरी
- केशव
- केशवती
- केशसंस्कारीधूप
- केशाकेशि
- केशिनी
- केसरिविक्रम
- केसरी
- कैकय
- कैकयी
- कैकेय
- कैटभ
- कैटभारि
- कैन्नरगीत
- कैवल्यपूजा
- कैशिकी
- कोंकण
- कोका
- कोट
- कोटिकशिला
- कोटिशिला
- कोदंड
- कोद्रव
- कोल
- कोलाहल
- कोशल,कोसल
- कोशातकी
- कोशावत्स
- कोष्ठगार
- कोहर
- कौंचपुर
- कौंडिन्य
- कौंतेय
- कौक्षयेक
- कौण
- कौतुकमंगल
- कौथुमि
- कौबेर
- कौमारी
- कौमुदी
- कौरव
- कौरवनाथ
- कौवेरी
- कौशल
- कौशल्य
- कौशांब
- कौशांबी
- कौशिक
- कौसला
- क्रकच
- क्रिड़ापर्वत
- क्रीडव
- क्रुष्ट
- क्रूर
- क्रूरकर्मा
- क्रूरनक्र
- क्रूरामर
- क्रोधध्वनि
- क्रौंचरवा
- क्वाथतोय
- क्षत्रिय
- क्षत्रिय-न्याय
- क्षत्रियांतक
- क्षपितारि
- क्षमाधर
- क्षांतिका
- क्षाम्ता
- क्षार
- क्षितिवर
- क्षितिसार
- क्षीरकदंब
- क्षीरधारा
- क्षीरपयोधर
- क्षीरवन
- क्षीरसागर
- क्षुब्ध
- क्षुयवरोधन
- क्षेमंकर
- क्षेमंधर
- क्षेमधर्मपति
- क्षेमधूर्त
- क्षेमसुंदरी
- क्षेमांजलि
- क्षोभण
- क्षोभ्या
- क्षोम
- क्ष्वेल