पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 104 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p>इससे आगे <span class="AnvayArth">अभिवंदिऊण सिरसा</span> इत्यादि गाथा से प्रारंभ कर पचास गाथा पर्यंत अथवा टीका (समय-व्याख्या) के अभिप्राय से अड़तालीस गाथा पर्यंत जीवादि नव पदार्थ प्रतिपादक द्वितीय महाधिकार प्रारंभ होता है । वहाँ दश अन्तराधिकार हैं ।</p> | <p>इससे आगे <span class="AnvayArth">[अभिवंदिऊण सिरसा]</span> इत्यादि गाथा से प्रारंभ कर पचास गाथा पर्यंत अथवा टीका (समय-व्याख्या) के अभिप्राय से अड़तालीस गाथा पर्यंत जीवादि नव पदार्थ प्रतिपादक द्वितीय महाधिकार प्रारंभ होता है । वहाँ दश अन्तराधिकार हैं ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>उन दस अधिकारों में से सर्व-प्रथम नमस्कार गाथा से प्रारम्भकर पाठक्रम से चार गाथा पर्यन्त व्यवहार मोक्षमार्ग की मुख्यता से व्याख्यान करते हैं । इस प्रकार प्रथम अंतराधिकार में समुदाय पातनिका है । वह इस प्रकार --</p> | <p>उन दस अधिकारों में से सर्व-प्रथम नमस्कार गाथा से प्रारम्भकर पाठक्रम से चार गाथा पर्यन्त व्यवहार मोक्षमार्ग की मुख्यता से व्याख्यान करते हैं । इस प्रकार प्रथम अंतराधिकार में समुदाय पातनिका है । वह इस प्रकार --</p> | ||
<p>((अपुनर्जनम के हेतु शिरसा नमन श्रीमहावीर को</p> | <p>((अपुनर्जनम के हेतु शिरसा नमन श्रीमहावीर को</p> | ||
<p>कर कहूँगा उनके पदारथ भंग, मुक्तिमार्ग को ॥११२॥))</p> | <p>कर कहूँगा उनके पदारथ भंग, मुक्तिमार्ग को ॥११२॥))</p> | ||
<p><span class="AnvayArth">अभिवंदिऊण</span> अभिवंद्य, प्रणाम कर / नमस्कार कर । कैसे नमस्कार कर ? <span class="AnvayArth">सिरसा</span> शिर से / शिर झुकाकर नमस्कार कर । किन्हें नमस्कार कर ? <span class="AnvayArth">अपुणब्भवकारणं महावीरं</span> अपुनर्भव / मोक्ष के कारण-भूत महावीर को नमस्कार कर । उन्हें नमस्कार करने के बाद क्या करता हूँ ? <span class="AnvayArth">वोच्छामि</span> उन्हें नमस्कार करने के बाद कहूँगा । किसे कहेंगे ? <span class="AnvayArth">तेसिं पयत्थभंगं</span> उन पंचास्तिकाय, षट् द्रव्यों के नवपदार्थ भेद को कहूँगा । न केवल नव पदार्थ को कहूँगा, अपितु <span class="AnvayArth">मग्गं मोक्खस्स</span> मोक्ष के मार्ग को भी कहूँगा ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[अभिवंदिऊण]</span> अभिवंद्य, प्रणाम कर / नमस्कार कर । कैसे नमस्कार कर ? <span class="AnvayArth">[सिरसा]</span> शिर से / शिर झुकाकर नमस्कार कर । किन्हें नमस्कार कर ? <span class="AnvayArth">[अपुणब्भवकारणं महावीरं]</span> अपुनर्भव / मोक्ष के कारण-भूत महावीर को नमस्कार कर । उन्हें नमस्कार करने के बाद क्या करता हूँ ? <span class="AnvayArth">[वोच्छामि]</span> उन्हें नमस्कार करने के बाद कहूँगा । किसे कहेंगे ? <span class="AnvayArth">[तेसिं पयत्थभंगं]</span> उन पंचास्तिकाय, षट् द्रव्यों के नवपदार्थ भेद को कहूँगा । न केवल नव पदार्थ को कहूँगा, अपितु <span class="AnvayArth">[मग्गं मोक्खस्स]</span> मोक्ष के मार्ग को भी कहूँगा ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>वह इसप्रकार -- मोक्ष सुख रूपी सुधारस-पान के पिपासित भव्यों को परम्परा से अनन्त ज्ञानादि गुण फल-रूप रत्नत्रयात्मक प्रवर्तमान महा धर्मतीर्थ के प्रतिपादक होने से मोक्ष के कारणभूत 'महावीर' नामक अंतिम जिनेश्वर को सर्वप्रथम नमस्कार करता हूँ । इसप्रकार गाथा-पूर्वार्ध द्वारा ग्रन्थकार मंगल के लिए इष्ट देवता को नमस्कार करते हैं । तत्पश्चात् उत्तरार्ध द्वारा शुद्धात्म-रुचि, प्रतीति, निश्चल अनुभूति रूप अभेद-रत्नत्रयात्मक निश्चय-मोक्ष-मार्ग के परंपरा कारण-भूत व्यवहार-मोक्ष-मार्ग को और उस ही व्यवहार-मोक्ष-मार्ग के अवयव-भूत दर्शन और ज्ञान के विषय-भूत होने से नव-पदार्थ को प्रतिपादित करता हूँ इसप्रकार प्रतिज्ञा करते हैं ।</p> | <p>वह इसप्रकार -- मोक्ष सुख रूपी सुधारस-पान के पिपासित भव्यों को परम्परा से अनन्त ज्ञानादि गुण फल-रूप रत्नत्रयात्मक प्रवर्तमान महा धर्मतीर्थ के प्रतिपादक होने से मोक्ष के कारणभूत 'महावीर' नामक अंतिम जिनेश्वर को सर्वप्रथम नमस्कार करता हूँ । इसप्रकार गाथा-पूर्वार्ध द्वारा ग्रन्थकार मंगल के लिए इष्ट देवता को नमस्कार करते हैं । तत्पश्चात् उत्तरार्ध द्वारा शुद्धात्म-रुचि, प्रतीति, निश्चल अनुभूति रूप अभेद-रत्नत्रयात्मक निश्चय-मोक्ष-मार्ग के परंपरा कारण-भूत व्यवहार-मोक्ष-मार्ग को और उस ही व्यवहार-मोक्ष-मार्ग के अवयव-भूत दर्शन और ज्ञान के विषय-भूत होने से नव-पदार्थ को प्रतिपादित करता हूँ इसप्रकार प्रतिज्ञा करते हैं ।</p> |
Revision as of 17:06, 24 August 2021
इससे आगे [अभिवंदिऊण सिरसा] इत्यादि गाथा से प्रारंभ कर पचास गाथा पर्यंत अथवा टीका (समय-व्याख्या) के अभिप्राय से अड़तालीस गाथा पर्यंत जीवादि नव पदार्थ प्रतिपादक द्वितीय महाधिकार प्रारंभ होता है । वहाँ दश अन्तराधिकार हैं ।
उन दस अधिकारों में से सर्व-प्रथम नमस्कार गाथा से प्रारम्भकर पाठक्रम से चार गाथा पर्यन्त व्यवहार मोक्षमार्ग की मुख्यता से व्याख्यान करते हैं । इस प्रकार प्रथम अंतराधिकार में समुदाय पातनिका है । वह इस प्रकार --
((अपुनर्जनम के हेतु शिरसा नमन श्रीमहावीर को
कर कहूँगा उनके पदारथ भंग, मुक्तिमार्ग को ॥११२॥))
[अभिवंदिऊण] अभिवंद्य, प्रणाम कर / नमस्कार कर । कैसे नमस्कार कर ? [सिरसा] शिर से / शिर झुकाकर नमस्कार कर । किन्हें नमस्कार कर ? [अपुणब्भवकारणं महावीरं] अपुनर्भव / मोक्ष के कारण-भूत महावीर को नमस्कार कर । उन्हें नमस्कार करने के बाद क्या करता हूँ ? [वोच्छामि] उन्हें नमस्कार करने के बाद कहूँगा । किसे कहेंगे ? [तेसिं पयत्थभंगं] उन पंचास्तिकाय, षट् द्रव्यों के नवपदार्थ भेद को कहूँगा । न केवल नव पदार्थ को कहूँगा, अपितु [मग्गं मोक्खस्स] मोक्ष के मार्ग को भी कहूँगा ।
वह इसप्रकार -- मोक्ष सुख रूपी सुधारस-पान के पिपासित भव्यों को परम्परा से अनन्त ज्ञानादि गुण फल-रूप रत्नत्रयात्मक प्रवर्तमान महा धर्मतीर्थ के प्रतिपादक होने से मोक्ष के कारणभूत 'महावीर' नामक अंतिम जिनेश्वर को सर्वप्रथम नमस्कार करता हूँ । इसप्रकार गाथा-पूर्वार्ध द्वारा ग्रन्थकार मंगल के लिए इष्ट देवता को नमस्कार करते हैं । तत्पश्चात् उत्तरार्ध द्वारा शुद्धात्म-रुचि, प्रतीति, निश्चल अनुभूति रूप अभेद-रत्नत्रयात्मक निश्चय-मोक्ष-मार्ग के परंपरा कारण-भूत व्यवहार-मोक्ष-मार्ग को और उस ही व्यवहार-मोक्ष-मार्ग के अवयव-भूत दर्शन और ज्ञान के विषय-भूत होने से नव-पदार्थ को प्रतिपादित करता हूँ इसप्रकार प्रतिज्ञा करते हैं ।
यद्यपि आगे चूलिका में मोक्ष-मार्ग का विशेष व्याख्यान है; तथापि नौ पदार्थों की संक्षेप सूचना हेतु यहाँ भी उन्हें कहा गया है । उनकी संक्षेप सूचना कैसे है ? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं यहाँ सर्वप्रथम नव पदार्थों का व्याख्यान प्रस्तुत है (इससे स्पष्ट है कि उनका यहाँ संक्षेप सूचन है)। वे पदार्थ कैसे हैं ? वे व्यवहार मोक्ष-मार्ग में विषयभूत हैं ऐसा अभिप्राय है ॥११२॥