पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 68 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><span class="AnvayArth">एवं कत्ता भोक्ता होज्जं</span> निश्चय की अपेक्षा कर्मों के कर्तृत्व-भोक्तृत्व से रहित होने पर भी व्यवहार से पूर्वोक्त नय-विभाग की अपेक्षा कर्ता और भोक्ता होकर । इस रूप वह कौन होकर ? <span class="AnvayArth">अप्पा</span> आत्मा ऐसा होकर । वह किस कारण इस रूप होता है ? <span class="AnvayArth">सगेहिं कम्मेहिं</span> अपने शुभाशुभ द्रव्य-भाव-कर्मों के कारण इस रूप होता है । ऐसा होता हुआ वह क्या करता है ? <span class="AnvayArth">हिंडदि</span> घूमता है । वह कहाँ घूमता है ? <span class="AnvayArth">संसारं</span> निश्चय-नय की अपेक्षा अनन्त संसार की व्याप्ति से रहित होने के कारण अनन्त ज्ञानादि गुणों के आधारभूत परमात्मा से विपरीत चतुर्गति संसार में घूमता है । वह संसार किस विशेषता वाला है ? <span class="AnvayArth">पारमपारं</span> वह भव्य की अपेक्षा सपार / सान्त है; परन्तु अभव्य की अपेक्षा अपार / अनंत है । वह आत्मा और कैसा है? <span class="AnvayArth">मोहसंच्छण्णो</span> विपरीत अभिनिवेश को उत्पन्न करने वाले मोह से रहित होने के कारण निश्चय-नय से अनन्त सद्दर्शन आदि शुद्ध गुण-मय होने पर भी वह आत्मा व्यवहार से दर्शन-मोह, चारित्र-मोह से संच्छन्न है, प्रच्छादित है -- ऐसा अभिप्राय है ॥७५॥</p> | <p><span class="AnvayArth">[एवं कत्ता भोक्ता होज्जं]</span> निश्चय की अपेक्षा कर्मों के कर्तृत्व-भोक्तृत्व से रहित होने पर भी व्यवहार से पूर्वोक्त नय-विभाग की अपेक्षा कर्ता और भोक्ता होकर । इस रूप वह कौन होकर ? <span class="AnvayArth">[अप्पा]</span> आत्मा ऐसा होकर । वह किस कारण इस रूप होता है ? <span class="AnvayArth">[सगेहिं कम्मेहिं]</span> अपने शुभाशुभ द्रव्य-भाव-कर्मों के कारण इस रूप होता है । ऐसा होता हुआ वह क्या करता है ? <span class="AnvayArth">[हिंडदि]</span> घूमता है । वह कहाँ घूमता है ? <span class="AnvayArth">[संसारं]</span> निश्चय-नय की अपेक्षा अनन्त संसार की व्याप्ति से रहित होने के कारण अनन्त ज्ञानादि गुणों के आधारभूत परमात्मा से विपरीत चतुर्गति संसार में घूमता है । वह संसार किस विशेषता वाला है ? <span class="AnvayArth">[पारमपारं]</span> वह भव्य की अपेक्षा सपार / सान्त है; परन्तु अभव्य की अपेक्षा अपार / अनंत है । वह आत्मा और कैसा है? <span class="AnvayArth">[मोहसंच्छण्णो]</span> विपरीत अभिनिवेश को उत्पन्न करने वाले मोह से रहित होने के कारण निश्चय-नय से अनन्त सद्दर्शन आदि शुद्ध गुण-मय होने पर भी वह आत्मा व्यवहार से दर्शन-मोह, चारित्र-मोह से संच्छन्न है, प्रच्छादित है -- ऐसा अभिप्राय है ॥७५॥</p> | ||
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<p>इस प्रकार कर्म-संयुक्तत्व की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुईं ।</p> | <p>इस प्रकार कर्म-संयुक्तत्व की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुईं ।</p> | ||
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Revision as of 17:06, 24 August 2021
[एवं कत्ता भोक्ता होज्जं] निश्चय की अपेक्षा कर्मों के कर्तृत्व-भोक्तृत्व से रहित होने पर भी व्यवहार से पूर्वोक्त नय-विभाग की अपेक्षा कर्ता और भोक्ता होकर । इस रूप वह कौन होकर ? [अप्पा] आत्मा ऐसा होकर । वह किस कारण इस रूप होता है ? [सगेहिं कम्मेहिं] अपने शुभाशुभ द्रव्य-भाव-कर्मों के कारण इस रूप होता है । ऐसा होता हुआ वह क्या करता है ? [हिंडदि] घूमता है । वह कहाँ घूमता है ? [संसारं] निश्चय-नय की अपेक्षा अनन्त संसार की व्याप्ति से रहित होने के कारण अनन्त ज्ञानादि गुणों के आधारभूत परमात्मा से विपरीत चतुर्गति संसार में घूमता है । वह संसार किस विशेषता वाला है ? [पारमपारं] वह भव्य की अपेक्षा सपार / सान्त है; परन्तु अभव्य की अपेक्षा अपार / अनंत है । वह आत्मा और कैसा है? [मोहसंच्छण्णो] विपरीत अभिनिवेश को उत्पन्न करने वाले मोह से रहित होने के कारण निश्चय-नय से अनन्त सद्दर्शन आदि शुद्ध गुण-मय होने पर भी वह आत्मा व्यवहार से दर्शन-मोह, चारित्र-मोह से संच्छन्न है, प्रच्छादित है -- ऐसा अभिप्राय है ॥७५॥
इस प्रकार कर्म-संयुक्तत्व की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुईं ।