पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 93 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">जदि हवदि</span> यदि होता तो । वह क्या होता ? <span class="AnvayArth">गमणहेदु</span> गमन में हेतु होता तो । कौन होता तो ? <span class="AnvayArth">आयासं</span> आकाश होता तो । मात्र गमन में ही हेतु नहीं, अपितु <span class="AnvayArth">ठाणकारणं</span> स्थिति में भी कारण होता तो । किनकी गति-स्थिति में कारण होता तो ? <span class="AnvayArth">तेसिं</span> उन जीव-पुद्गलों की गति-स्थिति में कारण होता तो । तब क्या दोष होता ? <span class="AnvayArth">पसजदि</span> प्रसंग प्राप्त होता । वह कौन सा / कैसा प्रसंग प्राप्त होता ? <span class="AnvayArth">अलोगहाणि</span> अलोक की हानि का प्रसंग प्राप्त होता, मात्र अलोक की हानि का ही प्रसंग प्राप्त नहीं होता अपितु <span class="AnvayArth">लोगस्सय अंतपरिवड्ढी</span> लोक के अंत की वृद्धि का प्रसंग प्राप्त होगा ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>वह इसप्रकार -- यदि आकाश गति और स्थिति का कारण है तो, उस आकाश का लोक से बहिर्भाग में भी सद्भाव होने से, वहाँ भी जीव-पुद्गलों का गमन होता और इससे अलोक की हानि हो जाती तथा लोकान्त की वृद्धि हो जाती; परन्तु ऐसा तो होता नहीं है; उस कारण ज्ञात होता है कि आकाश स्थिति-गति में कारण नहीं है ऐसा अभिप्राय है ॥१०१॥</p> | <p>वह इसप्रकार -- यदि आकाश गति और स्थिति का कारण है तो, उस आकाश का लोक से बहिर्भाग में भी सद्भाव होने से, वहाँ भी जीव-पुद्गलों का गमन होता और इससे अलोक की हानि हो जाती तथा लोकान्त की वृद्धि हो जाती; परन्तु ऐसा तो होता नहीं है; उस कारण ज्ञात होता है कि आकाश स्थिति-गति में कारण नहीं है ऐसा अभिप्राय है ॥१०१॥</p> | ||
</div> | </div> |
Revision as of 16:51, 24 August 2021
जदि हवदि यदि होता तो । वह क्या होता ? गमणहेदु गमन में हेतु होता तो । कौन होता तो ? आयासं आकाश होता तो । मात्र गमन में ही हेतु नहीं, अपितु ठाणकारणं स्थिति में भी कारण होता तो । किनकी गति-स्थिति में कारण होता तो ? तेसिं उन जीव-पुद्गलों की गति-स्थिति में कारण होता तो । तब क्या दोष होता ? पसजदि प्रसंग प्राप्त होता । वह कौन सा / कैसा प्रसंग प्राप्त होता ? अलोगहाणि अलोक की हानि का प्रसंग प्राप्त होता, मात्र अलोक की हानि का ही प्रसंग प्राप्त नहीं होता अपितु लोगस्सय अंतपरिवड्ढी लोक के अंत की वृद्धि का प्रसंग प्राप्त होगा ।
वह इसप्रकार -- यदि आकाश गति और स्थिति का कारण है तो, उस आकाश का लोक से बहिर्भाग में भी सद्भाव होने से, वहाँ भी जीव-पुद्गलों का गमन होता और इससे अलोक की हानि हो जाती तथा लोकान्त की वृद्धि हो जाती; परन्तु ऐसा तो होता नहीं है; उस कारण ज्ञात होता है कि आकाश स्थिति-गति में कारण नहीं है ऐसा अभिप्राय है ॥१०१॥