रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 1 - उत्थानिका अर्थ: Difference between revisions
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<p> | <p>जिस प्रकार रत्नों की रक्षा का उपायभूत करण्डक-पिटारा होता है और वह रत्नकरण्डक कहलाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शनादि रत्नों की रक्षा का उपायभूत यह रत्नकरण्डक नाम का शास्त्र है । इस शास्त्र की रचना करने के इच्छुक श्री समन्तभद्रस्वामी निर्विघ्नरूप से शास्त्र की परिसमाप्ति आदि फल की अभिलाषा रखकर इष्ट देवताविशेष- श्रीवर्धमान स्वामी को नमस्कार करते हुए कहते हैं --</p> | ||
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Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
जिस प्रकार रत्नों की रक्षा का उपायभूत करण्डक-पिटारा होता है और वह रत्नकरण्डक कहलाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शनादि रत्नों की रक्षा का उपायभूत यह रत्नकरण्डक नाम का शास्त्र है । इस शास्त्र की रचना करने के इच्छुक श्री समन्तभद्रस्वामी निर्विघ्नरूप से शास्त्र की परिसमाप्ति आदि फल की अभिलाषा रखकर इष्ट देवताविशेष- श्रीवर्धमान स्वामी को नमस्कार करते हुए कहते हैं --