योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 293
From जैनकोष
इसीका दृष्टान्तपूर्वक समर्थन करते हैं -
चट्टुकेन यथा भोज्यं गृहीत्वा स विमुच्यते ।
गोचरेण तथात्मानं विज्ञाय स विमुच्यते ।।२९३।।
अन्वय :- यथा चट्टुकेन भोज्यं गृहीत्वा स: (चट्टुक:) विमुच्यते तथा गोचरेण (ज्ञेय- लक्ष्येण) आत्मानं विज्ञाय स: (गोचर: ज्ञेय:) विमुच्यते ।
सरलार्थ :- जिस प्रकार कड़छी/चम्मच से भोजन ग्रहण करके उसे/चम्मच को छोड़ दिया जाता है उसी प्रकार गोचर के - ज्ञेय लक्ष्य-द्वारा आत्मा को जानकर ज्ञेय को छोड़ दिया जाता है ।