सिंहनिष्क्रीडित व्रत
From जैनकोष
यह व्रत जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है।
निम्न प्रस्तार के अनुसार क्रमश: १,२ आदि उपवास करते हुए ६० उपवास पूरे करें। बीच के २० स्थानों में पारणा करे। प्रस्तार-जघन्य प्रस्तार में मध्य का अंक ५ है। पहले के अंकों में दो-दो अंकों की सहायता से एक-एक बढ़ाता जाये और घटाता जाये। जैसे-१,२ (२-१=१), (२+१=३), (३-१=२), (३+१=४), (४-१=३), (४+१=५), (५-१=४); [५+१=६ यह विकल्प मध्यवाले पाँच अंकों को उल्लंघन कर जाने के कारण ग्राह्य नहीं। अत: यहाँ ६ की बजाय ५ का अंक ही रखना] यहाँ तक प्रस्तार का मध्य आया। इसके आगे उलटा क्रम चलाइए अर्थात् ५,४,५,३,४,२,३,१,२,१। इस प्रकार जघन्य सिंहनिष्क्रीडित का प्रस्तार है।-१,२,१,३,२,४,३,५,४,५; ५,४,५,३,४,२,३,१,२,१=६०। जाप-नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे। (ह.पु./३४/७७-७८) (व्रत विधान संग्रह/५६) (किशनसिंह क्रियाकोष) विधि जघन्यवत् है, प्रस्तार में कुछ अन्तर है जो नीचे दिया जाता है। मध्यम-प्रस्तार निकालने की विधि जघन्यवत् ही है। केवल मध्यम का अंक ५ की बजाय ९ है। अर्थात् (१,२,१,३,२,४,३,५,४,६,५,७,६,८,७,८,९,८,७,८,६,७,५,६,४,५,३,४,२,३,१,२,१=१५३) नोट-व्रत विधान संग्रह में निशान वाला आठ का अंक नहीं है। १५३ की बजाय १४५ उपवास है। (ह.पु./३४/७९-८०) (व्रत विधान सं./५७) (किशनसिंह क्रियाकोष) उत्कृष्ट-प्रस्तार विधान जघन्यवत् जानना। अन्तर केवल इतना है कि यहाँ मध्य का अंक ५ की बजाय १६ है। शेष सर्व विधि जघन्यवत् है। प्रस्तार-१,२,१,३,२,४,३,५,४,६,५,७,६,८,७,९,८,१०,९,११,१०,१२,११,१३,१२,१४,१३,१५,१४,१५,१६,१५,१४,१५,१३,१४,१२,१३,११,१२,१०,११,९,१०,८,९,७,८,६,७,५,६,४,४,५,३,१,२,१=४९६; स्थान ६१।