योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 296
From जैनकोष
विशोधित ज्ञान और अज्ञान का स्वरूप -
ज्ञाने विशोधिते ज्ञानमज्ञानेsज्ञानमूर्जितम् ।
शुद्धं स्वर्णमिव स्वर्णे लोहे लोहमिवाश्नुते ।।२९६।।
अन्वय :- (यथा) स्वर्णे (विशोधिते) शुद्धं स्वर्ण इव लोहे (च) लोहं इव अश्नुते । (तथा) ज्ञाने विशोधिते ज्ञानं अज्ञाने (च) अज्ञानं ऊर्जितं भवति ।
सरलार्थ :- जैसे स्वर्ण के विशोधित होनेपर शुद्ध स्वर्ण और लोहे के विशोधित होनेपर शुद्ध लोहा गुणवृद्धि/अतिशय को प्राप्त होता है; वैसे ज्ञान के विशोधित होने पर ज्ञान और अज्ञान के विशोधित होने पर अज्ञान ऊर्जित/अतिशय को प्राप्त होता है ।