योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 300
From जैनकोष
ज्ञानी अज्ञान को नहीं अपनाता -
ज्ञानी निर्मलतां प्राप्तो नाज्ञानं प्रतिपद्यते ।
मलिनत्वं कुतो याति काञ्चनं हि विशोधितम् ।।३००।।
अन्वय :- निर्मलतां प्राप्त: ज्ञानी अज्ञानं न प्रतिपद्यते । हि विशोधितं काञ्चनं मलिनत्वं कुत: याति ? (नैव याति) ।
सरलार्थ :- जैसे पूर्ण रीति से शुद्ध किया हुआ सुवर्ण मलिनता को प्राप्त नहीं होता, वैसे पूर्ण निर्मलता को प्राप्त हुआ ज्ञानी अज्ञान को प्राप्त नहीं होता ।