• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

शीलपाहुड़ गाथा 30

From जैनकोष

 Share 
जइ विसयलोलएहिं णाणीहि हविज्ज साहिदो मोक्खो ।
तो सो सच्चइपुत्ते दसपुव्वीओ वि किं गदो णरयं ॥३०॥
यदि विषयलोलै: ज्ञानिभि: भवेत्‌ साधित: मोक्ष: ।
तर्हि स: सात्यकिपुत्र: दशपूर्विक: किं गत: नरकं ॥३०॥


आगे कहते हैं कि शील के बिना ज्ञान ही से मोक्ष नहीं है, इसका उदाहरण कहते हैं
अर्थ - जो विषयों में लोल अर्थात्‌ लोलुप आसक्त और ज्ञानसहित, ऐसे ज्ञानियों ने मोक्ष साधा हो तो दशपूर्व को जाननेवाला रुद्र नरक को क्यों गया ?
भावार्थ - शुष्क कोरे ज्ञान ही से मोक्ष किसी ने साधा कहें तो दश पूर्व का पाठी रुद्र नरक क्यों गया ? इसलिए शील के बिना केवल ज्ञान ही से मोक्ष नहीं है, रुद्र कुशील सेवन करनेवाला हुआ, मुनिपद से भ्रष्ट होकर कुशील सेवन किया इसलिए नरक में गया, यह कथा पुराणों में प्रसिद्ध है ॥३०॥


Previous Page Next Page

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=शीलपाहुड़_गाथा_30&oldid=7807"
Categories:
  • आचार्य कुंद्कुंद
  • शीलपाहुड़
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 2 November 2013, at 22:50.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki