GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 63 - टीका हिंदी
From जैनकोष
निरतिचार पंच अणुव्रत निधियों के समान हैं । इस प्रकार जो इनका अतिचार रहित परिपालन करता है, वह नियम से स्वर्ग जाता है । स्वर्ग में भवप्रत्यय अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है और अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं तथा सप्तधातु से रहित दिव्य वैक्रियिक शरीर प्राप्त होता है ।