योगसार - संवर-अधिकार गाथा 231
From जैनकोष
मोह का त्यागी साधक ही कर्मो का संवर करता है -
इत्थं विज्ञाय यो मोहं दु:खबीजं विमुञ्चति ।
सोs न्यद्रव्यपरित्यागी कुरुते कर्म-संवरम् ।।२३१।।
अन्वय :- इत्थं विज्ञाय य: दु:ख-बीजं मोहं विमुञ्चति; स: अन्य-द्रव्य-परित्यागी कर्म- संवरं कुरुते ।
सरलार्थ :- इसप्रकार मोह को दु:ख का बीज जानकर जो साधक मोह को छोड़ता है, वह परद्रव्य का त्यागी होता हुआ कर्मो का संवर करता है अर्थात् कर्मो के आस्रव को रोकता है ।