प्रशस्त
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/9/28/446/1 कर्मनिर्दहनसामर्थ्यात्प्रशस्तम् । = जो (ध्यान) कर्मों को निर्दहन करने की सामर्थ्य से युक्त है, वह प्रशस्त है । ( राजवार्तिक/9/28/4/627/37 ) ।
सर्वार्थसिद्धि/9/28/446/1 कर्मनिर्दहनसामर्थ्यात्प्रशस्तम् । = जो (ध्यान) कर्मों को निर्दहन करने की सामर्थ्य से युक्त है, वह प्रशस्त है । ( राजवार्तिक/9/28/4/627/37 ) ।