योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 524
From जैनकोष
स्पर्शादि विषयों को जानने से कर्मबंध नहीं -
विषयं पञ्चधा ज्ञानी बुध्यमानो न बध्यते ।
त्रिलोकं केवली किं न जानानो बध्यतेsन्यथा ।।५२५।।
अन्वय : - ज्ञानी पञ्चधा विषयं बुध्यमान: (अपि) न बध्यते, अन्यथा त्रिलोकं जानान: केवली किं न बध्यते?
सरलार्थ :- ज्ञानी पाँच प्रकार के इन्द्रिय विषयों (स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण-शब्द) को जानते हुए भी कर्मबन्ध को प्राप्त नहीं होते । (यदि विषयों को जानने से ज्ञानी बन्ध को प्राप्त हो तो) तीन लोक को जाननेवाले केवली भगवान क्या बन्ध को प्राप्त नहीं होंगे? (अवश्य बन्धेंगे, किन्तु वे तो नहीं बन्धते हैं, अत: ज्ञानी भी विषयों को जानते हुए बन्धते नहीं हैं - इसमें क्या आश्चर्य है ?) ।