योगसार - संवर-अधिकार गाथा 223
From जैनकोष
परद्रव्य के गुण-दोषों से जीव को हर्ष-विषाद नहीं -
नानन्दो वा विषादो वा परे संक्रान्त्यभावत: ।
परदोष-गुणैर्नूनं कदाचित् न विधीयते ।।२२३।।
अन्वय :- पर-दोष-गुणै: परे संक्रांन्त्यभावत: आनन्द: वा विषाद: वा कदाचित् नूनं न विधीयते ।
सरलार्थ :- पुद्गलादि अन्य द्रव्य के गुण-दोषों से जीव को हर्ष-विषाद अर्थात् सुख-दु:ख नहीं होते; क्योंकि किसी भी परद्रव्य के गुण अथवा दोषों का जीव द्रव्य में संक्रमण अर्थात् प्रवेश ही नहीं होता ।