योगसार - संवर-अधिकार गाथा 252
From जैनकोष
शीघ्र संवर करनेवालों का परिचय -
(स्वागता)
आत्मतत्त्वमपहस्तित-रागं ज्ञान-दर्शन-चरित्रमयं य : ।
मुक्तिमार्गवगच्छति योगी संवृणोति दुरितानि स सद्य: ।।२५२।।
अन्वय :- य: योगी अपहस्तितरागं आत्म-तत्त्वं, च ज्ञान-दर्शन-चारित्रमयं मुक्तिमार्गं (च) अवगच्छति स: सद्य: दुरितानि (कर्माणि) संवृणोति ।
सरलार्थ :- जो योगी अर्थात् महामुनिराज राग-रहित/वीतरागस्वभावी त्रिकाली निज शुद्ध आत्मतत्त्वरूप द्रव्य को और सम्यक्ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप मोक्षमार्गस्वरूप पर्याय को जानते/ पहिचानते हैं, वे कर्मो का शीघ्र अर्थात् पूर्ण संवर करते हैं ।