वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1223
From जैनकोष
गगनवनधरित्रीचारिणां देहभाजाम् दलनदहनबंधच्छेदघातेषु यत्नम्।
दृतिनखकरनेत्रोत्पाटने कौतुकं यत् तदिह गदितमुच्चैश्चेतसां रौद्रमित्थम्।।1223।।
आकाश में चलने वाले पक्षी, जल में चलने वाली मछली आदिक, थल में चलने वाले पशु आदिक इन जीवों के घात करने का उपाय रचना, घात करने का यत्न करना ये सब रौद्रध्यान हैं। यह हिंसानंद रौद्रध्यान का स्वरूप कहा जा रहा है। तो पशुवों की चमड़ी, नख, हाथ आदिक नष्ट करके जो भी रूप परिणाम होते हैं वे सब रौद्रध्यान कहलाते हैं। कितने ही लोग कुत्ते को लुटाते और उसकी पूँछ काट डालते, कुछ लोग तोते, तीतर आदि पिंजड़े में बंद करते, ये सब आखिर हिंसक जीव ही तो हैं। इनसे कभी जीवघात करने की बात देखी तो वहाँ भी रौद्रध्यान बनता है। गुरुजी सुनाते थे कि बाईजी के घर में एक बिल्ली पली रहती थी। वह बिल्ली बाईजी को तथा गुरुजी को बड़ा अनुराग दिखाती थी। जब कभी ये लोग कहीं बाहर चले जाते और वहाँ से लौटकर आते तो वह बिल्ली उनके पैरों में लोटकर बड़ा अनुराग दिखाती थी। तो गुरुजी उसे खूब दूध पिलाने लगे, खूब रोटी खिलाने लगे। बाईजी ने गुरुजी से कहा कि देखो― तुम इस बिल्ली को खूब खिलाते पिलाते हो, पर किसी दिन तुमको इससे बड़ा दु:ख होगा। तो कुछ ही दिनों के बाद में हुआ क्या कि उस बिल्ली ने एक चूहे को पकड़कर बुरी तरह से मार डाला। ऐसे दृश्य को देखकर गुरुजी को बड़ा दु:ख हुआ। तो किसी हिंसक पुरुष को पालकर कभी यदि उसके द्वारा किसी जीव की हिंसा करते हुए दिख गया तो उस समय जो भाव बनेंगे, जो ध्यान बनेगा वह भी रौद्रध्यान से संबंध रखने वाली बात है। आजकल तो चमड़े के कोट कमीज भी बनते हैं। पहिले छोटे-छोटे बछड़ों को जिंदा मारकर उनकी चमड़ी छील ली जाती है और फिर उस ही चमड़ी को पानी में उबालकर साफ कर वे कोट कमीज आदि बनते हैं। तो कोई यदि चमड़े से बनी चीजों का उपयोग करे तो उसे भी रौद्रध्यान में शामिल होना पड़ेगा। आखिर समर्थन तो उनका मिलता ही है। तो जीवों को सताने का जो केवल कौतूहलरूप परिणाम रखते हैं वह रौद्रध्यान है, ऐसा बड़े चित्त वाले पुरुषों ने कहा है।