वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1289
From जैनकोष
विद्रवंति जना: पापा: संचरंत्यमिसारिका:।
क्षोभयंतींगिताकारैर्यत्र नार्यो पशंकिता:।।1289।।
जहाँ पापीजन उपद्रव करते हों, जहाँ अविसारिका स्त्री विचरती हों, जहाँ स्त्री नि:शंक होकर अपने कटाक्षभाव से क्षोभ उत्पन्न करती हों ऐसा स्थान ज्ञानी मुनि के बसने योग्य नहीं है। पापी लोग, गुंडा, उद्दंड पुरुष जहाँ उपद्रव किया करते हों, जहाँ व्यभिचारिणी स्त्री बाजार करती हों, वह स्थान ध्यान साधक पुरुषों के योगय नहीं है, क्योंकि उन स्थानों में उपद्रव को शंका और व्यर्थ का ऊधम वादविवाद की संभावना रहती है और जहाँ वेश्यायें विचरती हैं वहाँ कामविकार आदिक के अशुद्ध वातावरण रहते हैं इस कारण ऐसा अयोग्य स्थान ध्यान के योग्य नहीं है। जहाँ अंगहीन भिखारी आदिक रहते हों वह भी स्थान योग्य नहीं है। और जहाँ शत्रु का आवागमन विशेष हो, जो अपनी सेवा आदिक से क्षोभ उत्पन्न करता हो वह स्थान ध्यान सिद्धि के योग्य नहीं है।