वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-14
From जैनकोष
एक प्रदेशादिषभाज्य: पुद्गलानाम् ।। 5-14 ।।
पुद्गलों का लोकाकाश के एकप्रदेश आदि में अवगाह―सूत्र के शब्दों का अर्थ है कि पुद्गलों, का एक प्रदेश आदिक लगा लेना चाहिये । इस सूत्र में भी लोकाकाशेवगाह: इन दोनों ही पदों की अनुवृत्ति ली जा रही है जिससे कि सूत्र का पूर्व अर्थ बना―पुद्गलों का लोकाकाश के एक प्रदेश आदिक में अवगाह लगा लेना चाहिये । यहाँ लोकाकाशेवगाह: इम सूत्र से लोकाकाश की अनुवृत्ति तो ली, किंतु अर्थ के वश से विभक्ति का परिणमन हो जाता है । लोकाकाशे शब्द की सप्तमी विभक्ति लगी है किंतु यहां षष्ठी विभक्ति का अर्थ होता है और जिससे अर्थ बना यह कि लोक के एक प्रदेश आदिक में अवगाह है । अब एक प्रदेश आदिक में अवगाह कैसे जाना जाये उसकी युक्ति यह है कि उस ही लोकाकाश के एक प्रदेश में जैसे एक परमाणु का अवगाह हो रहा है उसी प्रकार अनेक अणु का अथवा अनेक स्कंधों का भी सूक्ष्म परिणमन हो जाने से अवगाह हो जाता है और इस प्रकार किन्ही स्कंधों का कुछ प्रदेशों में अवगाह है, किन्हीं का असंख्यातवें भाग में अवगाह है । और असंख्यात भी असंख्यात प्रकार के होते हैं, सो यों उनके विविध क्षेत्रों में अवगाह है । यह बात पहले बता दी गई थी कि एक परमाणु के साथ अन्य परमाणु का संबंध कहीं सर्वदेश से होता है तो वह एक प्रदेशमात्र रह जाता है और कुछ परमाणुओं का संबंध परमाणु के एकदेश में होता है । तो वह पिंड दो आदिक प्रदेशों में रहता है । पुद्गल स्कंधों में इस तरह का सूक्ष्म परिणमन होना असिद्ध नहीं है क्योंकि सूक्ष्म व स्थूल में स्कंधों में सूक्ष्म व स्थूल परिणमन होता देखा जा रहा है जैसे बहुत सी रूई बिखरी पड़ी है उस समग्र रूई को यदि दबा दिया जाये और यंत्र से उसका केंद्रीकरण हो जाये तो वह पिंड थोड़े प्रदेशों को घेरने वाला वहाँ ही स्पष्ट दिख रहा है । स्थूल पदार्थों में दूसरे स्थूल पदार्थ भी प्रविष्ट हो जाते हैं, यह भी देखा जा रहा है । जैसे घर में सैकड़ों दीपकों के प्रकाश एक ही जगह समा जाते हैं अथवा ऊंटनी के दूध से भरे हुये बर्तन में उतना ही मधु डालने से समा जाता है या जैसे दूध में बूरा घुलकर उतने में ही समा जाता, बुझाया हुआ पारा सोने को समा लेता है और बोझ उतना ही रहता है । बालू रेत या राख में पानी भी समा जाता है, जब यहाँ स्थूल पदार्थ भी अनेक स्थूल पदार्थों को समा लेते हैं तो सूक्ष्म परिणमन वाले परमाणुओं का अवगाह हो जाये और वह भी सूक्ष्म पिंड होकर आकाश के थोड़े से प्रदेश में रहे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । अब पुद्गल का अवगाह बताकर जीवों का अवगाह बतला रहे हैं कि जीव आकाश के कितने हिस्से में रहता है ।