GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 108 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, जीव के स्वरूप का कथन है ।
जीव दो प्रकार के हैं :- (१) संसारी अर्थात अशुद्ध, और (२) सिद्ध अर्थात शुद्ध । वे दोनों वास्तव में चेतना-स्वभाव-वाले हैं और *चेतना-परिणाम-स्वरूप उपयोग द्वारा लक्षित होने योग्य (-पहिचाने जाने योग्य) हैं। उनमें, संसारी जीव देह में वर्तने वाले अर्थात देह-सहित हैं और सिद्ध जीव देह में नहीं वर्तने वाले, अर्थात देह-रहित हैं ॥१०८॥
*चेतनापरिणाम स्वरूप = चेतना का परिणाम सो उपयोग । वह उपयोग जीव-रूपी लक्ष्य का लक्षण है ।