GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 170 - अर्थ
From जैनकोष
इसलिए मोक्षाभिलाषी सर्वत्र किंचित् भी राग न करे । इससे वह वीतरागी भव्य भवसागर को तिर जाता है / पार कर जाता है ।
इसलिए मोक्षाभिलाषी सर्वत्र किंचित् भी राग न करे । इससे वह वीतरागी भव्य भवसागर को तिर जाता है / पार कर जाता है ।