GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 42 - अर्थ
From जैनकोष
ज्ञानी को ज्ञान से पृथक् नहीं किया जा सकता है । ज्ञान अनेक हैं, इसलिये ज्ञानियों ने द्रव्य को विश्वरूप / अनेक रूप कहा है ।
ज्ञानी को ज्ञान से पृथक् नहीं किया जा सकता है । ज्ञान अनेक हैं, इसलिये ज्ञानियों ने द्रव्य को विश्वरूप / अनेक रूप कहा है ।