GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 42 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
एक आत्मा अनेक ज्ञानात्मक होने का समर्थन है ।
प्रथम तो ज्ञानी (आत्मा) ज्ञान से पृथक नहीं है; क्योंकि
- दोनों एक अस्तित्व से रचित होने से दोनों को एक-द्रव्यपना है,
- दोनों के अभिन्न प्रदेश होने से दोनों को एक-क्षेत्रपना है,
- दोनों एक समय में रचे जाते होने से दोनों को एक-कालपना है,
- दोनों का एक स्वभाव होने से दोनों को एक-भावपना है ।