GP:प्रवचनसार - गाथा 161 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
शरीर, वाणी और मन तीनों ही परद्रव्य हैं, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्यात्मक हैं । उनके पुद्गलद्रव्यत्व है, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्य के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्तित्व में निश्चित (रहे हुए) हैं । उस प्रकार का पुद्गलद्रव्य अनेक परमाणुद्रव्यों का एक पिण्ड पर्यायरूप से परिणाम है, क्योंकि अनेक परमाणुद्रव्यों के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्तित्व अनेक होने पर भी कथंचित् (स्निग्धत्व-रूक्षत्वकृत बंधपरिणाम की अपेक्षा से) एकत्वरूप अवभासित होते हैं ॥१६१॥