GP:प्रवचनसार - गाथा 264 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, कैसा जीव श्रमणाभास है सो कहते हैं :-
आगम का ज्ञाता होने पर भी, संयत होने पर भी, तप में स्थित होने पर भी, जिनोक्त अनन्त पदार्थों से भरे हुए विश्व को—जो कि (विश्व) अपने आत्मा से ज्ञेयरूप से पिया जाता होने के कारण आत्मप्रधान है उसका—जो जीव श्रद्धान नहीं करता वह श्रमणाभास है ॥२६४॥