GP:प्रवचनसार - गाथा 40 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, इन्द्रियज्ञान के लिये नष्ट और अनुत्पन्न का जानना अशक्य है (अर्थात् इन्द्रियज्ञान नष्ट और अनुत्पन्न पदार्थों को-पर्यायों को नहीं जान सकता) ऐसा न्याय से निश्चित करते हैं -
विषय और विषयी का १सन्निपात जिसका लक्षण (स्वरूप) है, ऐसे इन्द्रिय और पदार्थ के २सन्निकर्ष को प्राप्त करके, जो अनुक्रम से उत्पन्न ईहादिक के क्रम से जानते हैं वे उसे नहीं जान सकते जिसका स्व-अस्तित्व काल बीत गया है तथा जिसका स्व-अस्तित्वकाल उपस्थित नहीं हुआ है क्योंकि (अतीत-अनागत पदार्थ और इन्द्रिय के) यथोक्त लक्षण (यथोक्तस्वरूप, ऊपर कहा गया जैसा) ३ग्राह्यग्राहक सम्बन्ध का असंभव है ।
१सन्निपात = मिलाप; संबंध होना वह
२सन्निकर्ष = सम्बन्ध; समीपता
३इन्द्रियगोचर पदार्थ ग्राह्य है और इन्द्रियाँ ग्राहक हैं