GP:प्रवचनसार - गाथा 76 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
पर-सम्बन्ध-युक्त होने से, बाधा सहित होने से, विच्छन्न होने से, बन्ध का कारण होने से, और विषम होने से - इन्द्रियसुख, पुण्यजन्य होने पर भी, दुःख ही है ।
इन्द्रियसुख
- 'पर के सम्बन्धवाला' होता हुआ पराश्रयता के कारण पराधीन है,
- बाधासहित होता हुआ खाने, पीने और मैथुन की इच्छा इत्यादि तृष्णा की व्यक्तियों से (तृष्णा की प्रगटताओं से) युक्त होने से अत्यन्त आकुल है,
- 'विच्छिन्न' होता हुआ असाता-वेदनीय का उदय जिसे १च्युत कर देता है ऐसे साता-वेदनीय के उदय से प्रवर्तमान होता हुआ अनुभव में आता है, इसलिये विपक्ष की उत्पत्तिवाला है,
- 'बन्ध का कारण' होता हुआ विषयोपभोग के मार्ग में लगी हुई रागादि दोषों की सेना के अनुसार कर्म-रज के २घन-पटल का सम्बन्ध होने के कारण परिणाम से दु:सह है, और
- 'विषम' होता हुआ हानि- वृद्धि में परिणमित होने से अत्यन्त अस्थिर है;
१च्युत करना = हटा देना; पदभ्रष्ट करना; (साता-वेदनीय का उदय उसकी स्थिति अनुसार रहकर हट जाता है और असाता-वेदनीय का उदय आता है)
२घन पटल = सघन (गाढ) पर्त, बड़ा झुण्ड