GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 59 - टीका हिंदी
From जैनकोष
परदार शब्द का समास -- 'परस्य दारा: परदारास्तान्' अर्थात् पर की स्त्री, अथवा 'पराश्च ते दाराश्च परदारास्तान्' अर्थात् परस्त्रियाँ । यहाँ पर पहले समास में पर के द्वारा गृहीत स्त्री को ग्रहण किया है और दूसरे में पर के द्वारा जो ग्रहण नहीं की गई है, ऐसी कन्या अथवा वेश्या का ग्रहण होता है । इस प्रकार परिगृहीत और अपरिगृहीत दोनों प्रकार की परस्त्रियों के साथ पापोपार्जन के भय से, न कि राजादिक के भय से, न स्वयं संगम करता है और न परस्त्री लम्पट अन्य पुरुषों को गमन कराता है, वह परस्त्री-त्याग अणुव्रत अथवा स्वदारसन्तोषव्रत कहलाता है ।