GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 66 - टीका हिंदी
From जैनकोष
श्रमण मुनियों को कहते हैं । इनमें जो उत्तम श्रेष्ठ गणधरादिक देव हैं, वे श्रमणोत्तम कहलाते हैं । उन्होंने गृहस्थों के आठ मूलगुण इस तरह कहे हैं- १. मद्यत्याग, २. मांसत्याग, ३. मधुत्याग, ४. अहिंसाणुव्रत, ५. सत्याणुव्रत, ६. अचौर्याणुव्रत, ७. ब्रह्मचर्याणुव्रत, ८. परिग्रहपरिमाणाणुव्रत ।