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रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 84 - अर्थ
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त्रसहतिपरिहरणार्थं क्षौद्रं पिशितं प्रमादपरिहृतये
मद्यं च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातैः ॥84॥