GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 88-89 - टीका हिंदी
From जैनकोष
काल की मर्यादा लेकर जो प्रत्याख्यान-त्याग किया जाता है, वह नियम है । भोजन का अर्थ तो प्रसिद्ध है ही । घोड़ा आदि को वाहन कहते हैं । पलंग आदि शयन हैं । स्नान का अर्थ भी प्रसिद्ध ही है । केशर आदि के विलेपन को पवित्रांगराग कहते हैं । यह अंगराग अञ्जनतिलक आदि का उपलक्षण है । अंगराग के साथ जो पवित्र विशेषण है, वह दोषों को दूर करने के लिए दिया है । इससे सदोष औषधि और अंगराग का निराकरण हो जाता है । कुसुम-फूल । ताम्बूल-पान । वसन-वस्त्र । कटक-आभूषण को कहते हैं । कामसेवन को मन्मथ कहते हैं । जिसमें गीत नृत्य वादित्र तीनों हों, वह संगीत कहलाता है । जिसमें मात्र गीत ही हो, नृत्य वादित्र न हो, वह गीत कहलाता है । इन सभी के विषय में समय की मर्यादा लेकर जो त्याग किया जाता है, वह नियम कहलाता है । प्रवर्तमान समय में एक घड़ी, एक पहर आदि काल की मर्यादा लेकर त्याग करना, जैसे आज का त्याग है । दिन-रात तो प्रसिद्ध है । पन्द्रह दिन को पक्ष कहते हैं । तीस दिन को महीना कहते हैं । दो महीने की एक ऋतु होती है । छह मास को अयन कहते हैं । इस प्रकार समय की अवधि रखकर भोजन आदि का त्याग करना नियम कहलाता है ।