पुरुषोत्तम: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
<ol> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol class="HindiText"> | |||
<li>व्यंतर देवों का एक भेद - देखें [[ व्यंतर ]]। </li> | <li>व्यंतर देवों का एक भेद - देखें [[ व्यंतर ]]। </li> | ||
<li> महापुराण/60/50-66 | <li><span class="GRef"> महापुराण/60/50-66 </span>पूर्वभव नं.2 में पोदनपुर का राजा वसुषेण था फिर अगले भव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में चौथा नारायण हुआ। विशेष परिचय - देखें [[ शलाका पुरुष#4 | शलाका पुरुष - 4]]। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 15: | Line 16: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष तथा चौथा वासुदेव । यह अर्धचक्री था । इसने कोटिशिला को अपने वक्षस्थल तक उठाया था । इसका जन्म भरतक्षेत्र में स्थित द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और उसकी रानी सीता से हुआ था । इसकी पटरानी का नाम मनोहरा था । यह कृष्णकांतिधारी, लोकव्यवहार प्रवर्तक, पचास धनुष प्रमाण ऊंचा था और इसकी आयु तीस लाख वर्ष की थी । इसने लोक-व्यवहार का प्रवर्तन किया था । प्रतिनारायण मधुसूदन को मारकर यह छठे नरक में उत्पन्न हुआ । तीसरे पूर्वभव में यह भरतक्षेत्र के पोद<span class="GRef"> महापुराण </span>र नगर का वसुषेण नामक राजा था । संन्यासपूर्वक मरण कर यह सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर नारायण हुआ । <span class="GRef"> महापुराण | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष तथा चौथा वासुदेव । यह अर्धचक्री था । इसने कोटिशिला को अपने वक्षस्थल तक उठाया था । इसका जन्म भरतक्षेत्र में स्थित द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और उसकी रानी सीता से हुआ था । इसकी पटरानी का नाम मनोहरा था । यह कृष्णकांतिधारी, लोकव्यवहार प्रवर्तक, पचास धनुष प्रमाण ऊंचा था और इसकी आयु तीस लाख वर्ष की थी । इसने लोक-व्यवहार का प्रवर्तन किया था । प्रतिनारायण मधुसूदन को मारकर यह छठे नरक में उत्पन्न हुआ । तीसरे पूर्वभव में यह भरतक्षेत्र के पोद<span class="GRef"> महापुराण </span>र नगर का वसुषेण नामक राजा था । संन्यासपूर्वक मरण कर यह सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर नारायण हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 60.68-82, 67. 142-144,</span> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#223|पद्मपुराण - 20.223-228]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_53#37|हरिवंशपुराण - 53.37]], 60. 523-825, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 112 </span></p> | ||
<p id="2">(2) तीर्थंकर विमलनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । <span class="GRef"> महापुराण </span> | <p id="2" class="HindiText">(2) तीर्थंकर विमलनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.530-533</span> </p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 27: | Line 28: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- व्यंतर देवों का एक भेद - देखें व्यंतर ।
- महापुराण/60/50-66 पूर्वभव नं.2 में पोदनपुर का राजा वसुषेण था फिर अगले भव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में चौथा नारायण हुआ। विशेष परिचय - देखें शलाका पुरुष - 4।
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष तथा चौथा वासुदेव । यह अर्धचक्री था । इसने कोटिशिला को अपने वक्षस्थल तक उठाया था । इसका जन्म भरतक्षेत्र में स्थित द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और उसकी रानी सीता से हुआ था । इसकी पटरानी का नाम मनोहरा था । यह कृष्णकांतिधारी, लोकव्यवहार प्रवर्तक, पचास धनुष प्रमाण ऊंचा था और इसकी आयु तीस लाख वर्ष की थी । इसने लोक-व्यवहार का प्रवर्तन किया था । प्रतिनारायण मधुसूदन को मारकर यह छठे नरक में उत्पन्न हुआ । तीसरे पूर्वभव में यह भरतक्षेत्र के पोद महापुराण र नगर का वसुषेण नामक राजा था । संन्यासपूर्वक मरण कर यह सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर नारायण हुआ । महापुराण 60.68-82, 67. 142-144, पद्मपुराण - 20.223-228, हरिवंशपुराण - 53.37, 60. 523-825, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 112
(2) तीर्थंकर विमलनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । महापुराण 76.530-533