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जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

शलाका पुरुष

From जैनकोष

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तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि प्रसिद्ध पुरुषों को शलाका पुरुष कहते हैं। प्रत्येक कल्पकाल में 63 होते हैं। 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण। अथवा 24 तीर्थंकर, उनके गुरु (24 पिता, 24 माता), 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 11 रुद्र, 9 नारद, 24 कामदेव और 14 कुलकर आदि मिलाने से 169 शलाका पुरुष होते हैं।

  1. शलाका पुरुष सामान्य निर्देश
    1. 63 शलाका पुरुष नाम निर्देश।
    2. 169 शलाका पुरुष निर्देश।
    • शलाका पुरुषों की आयु बंध योग्य परिणाम।-देखें आयु - 3.8।
    • कौन पुरुष मरकर कहाँ उत्पन्न हो और क्या गुण प्राप्त करे।-देखें जन्म - 6.2।
    1. शलाका पुरुषों का मोक्ष प्राप्त संबंधी नियम।
    2. शलाका पुरुषों का परस्पर मिलाप नहीं होता।
    3. शलाका पुरुषों के शरीर की विशेषता।
    • एक क्षेत्र में एक ही तज्जातीय शलाका पुरुष होता है।-देखें विदेह (त्रिलोकसार) ।
    • चरम शरीरी चौथे काल में ही उत्पन्न होते हैं।-देखें जन्म - 5।
    • अचरम शरीरी पुरुषों का अकाल मरण भी संभव है।-देखें मरण - 4।
    • तीर्थंकर।-देखें तीर्थंकर ।
    • गणधर चौथे काल में ही उत्पन्न होते हैं।-देखें जन्म - 5।
  2. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
    1. चक्रवर्ती का लक्षण।
    2. नाम व पूर्व भव परिचय।
    3. वर्तमान भव में नगर व माता पिता।
    4. वर्तमान भव शरीर परिचय।
    5. कुमार कालादि परिचय।
    6. वैभव परिचय।
    7. चौदह रत्न परिचय सामान्य।
    8. चौदह रत्न परिचय विशेष।
    9. नवनिधि परिचय।
    10. दश प्रकार भोग परिचय।
    11. चक्रवर्ती की विभूतियों के नाम।
    12. दिग्विजय का स्वरूप।
    13. राजधानी का स्वरूप।
    14. हुंडावसर्पिणी में चक्रवर्ती के उत्पत्ति काल में कुछ अंतर।
    • चक्रवर्ती के शरीरादि संबंधी नियम।-देखें शलाका पुरुष - 1.4,1.5।
  3. नव बलदेव निर्देश
    1. पूर्व भव परिचय।
    2. वर्तमान भव के नगर व माता-पिता।
    3. वर्तमान भव परिचय।
    4. बलदेव का वैभव।
    5. बलदेवों संबंधी नियम।
  4. नव नारायण निर्देश
    1. पूर्व भव परिचय।
    2. वर्तमान भव के नगर व माता-पिता।
    3. वर्तमान शरीर परिचय।
    4. कुमार कालादि परिचय।
    5. नारायणों का वैभव।
    6. नारायणों की दिग्विजय।
    7. नारायण संबंधी नियम।
  5. नव प्रतिनारायण निर्देश
    1. नाम व पूर्वभव परिचय।
    2. वर्तमान भव परिचय।
    3. प्रतिनारायणों संबंधी नियम।
  6. नव नारद निर्देश
    1. वर्तमान नारदों का परिचय।
    2. नारदों संबंधी नियम।
  7. एकादश रुद्र निर्देश
    1. नाम व शरीरादि परिचय।
    2. कुमार कालादि परिचय।
    3. रुद्रों संबंधी कुछ नियम।
    • रुद्र चौथे काल में ही उत्पन्न होते हैं।-देखें जन्म - 5।
  8. चौबीस कामदेव निर्देश
    1. चौबीस कामदेवों का नाम निर्देश मात्र।
    • कामदेव चौथे काल में ही उत्पन्न होते हैं।-देखें जन्म - 5।
  9. सोलह कुलकर निर्देश
    1. वर्तमान कालिक कुलकर परिचय।
    2. कुलकर के अपरनाम व उनका सार्थक्य।
    3. पूर्वभव संबंधी नियम।
    4. पूर्वभव में संयम तप आदि संबंधी नियम।
    5. उत्पत्ति व संख्या आदि संबंधी नियम।
  10. भावि शलाका पुरुष निर्देश
    1. कुलकर, चक्रवर्ती व बलदेव निर्देश
    2. नारायणादि परिचय।



1. शलाका पुरुष सामान्य निर्देश


1. 63 शलाका पुरुष नाम निर्देश

तिलोयपण्णत्ति/4/510-511 एत्तो सलायपुरिसा तेसट्ठी सयलभवणविक्खादा। जायंति भरहखेत्ते णरसीहाकेण।510। तित्थयरचक्कबलहरिपडिसत्तु णाम विस्सुदा कमसो। बिउणियबारसबारस पयत्थणिधिरंधसंखाए।511। = अब यहाँ से आगे (अंतिम कुलकर के पश्चात्) पुण्योदय से भरतक्षेत्र में मनुष्यों में श्रेष्ठ और संपूर्ण लोक में प्रसिद्ध तिरेसठ शलाका पुरुष उत्पन्न होने लगते हैं।510। ये शलाका पुरुष तीर्थंकर 24, चक्रवर्ती 12, बलभद्र 9, नारायण 9, प्रतिशत्रु 9, इन नामों से प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार उनकी संख्या 63 है।511। ( त्रिलोकसार/803 ), ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/2/179-184 ), ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/361-362/-773/3 )।

तिलोयपण्णत्ति/4/1615; 1619 ...हुंडावसप्पिणी स। एक्का...।1615। दुस्समसुसमे काले अट्ठावणा सलायपुरिसा य।1619। =हुंडावसर्पिणी काल में 58 ही शलाका पुरुष होते हैं।


2. 169 शलाका पुरुष निर्देश

तिलोयपण्णत्ति/4/1473 तित्थयरा तग्गुरओ चक्कीबलकेसिरुद्दणारद्दा। अंगजकुलियरपुरिसा भविया सिज्झंति णियमेण।1473। =24 तीर्थंकर, उनके गुरु (24 पिता, 24 माता), 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 नारायण, 11 रुद्र, 9 नारद, 24 कामदेव और 14 कुलकर ये सब भव्य होते हुए नियम से सिद्ध होते हैं।1473। (इनके अतिरिक्त 9 प्रतिनारायण ऊपर गिना दिये गये हैं। ये सब मिलकर 169 दिव्य पुरुष कहे जाते हैं।)


3. शलाका पुरुषों का मोक्ष प्राप्ति संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1473 तित्थयरा तग्गुओ चक्कीबलकेसिरुद्दणारद्दा। अंगजकुलियरपुरिसा भविया सिज्झंति णियमेण।1473। =तीर्थंकर, उनके गुरु (पिता व माता), चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर ये सब (प्रतिनारायण को छोड़कर 160 दिव्य पुरुष) भव्य होते हुए नियम से (उसी भव में या अगले 1, 2 भवों में) सिद्ध होते हैं।1473।


4. शलाका पुरुषों का परस्पर मिलाप नहीं होता

हरिवंशपुराण/54/59-60 नान्योन्यदर्शनं जातु चक्रिणां धर्मचक्रिणाम् । हलिनां वासुदेवानां त्रैलोक्ये प्रतिचक्रिणाम् ।59। गतस्य चिह्नमात्रेण तव तस्य च दर्शनम् । शंखस्फीटनिनादैश्च रथ ध्वजनिरीक्षणै:।60। =तीन लोक में कभी चक्रवर्ती-चक्रवर्तियों का, तीर्थंकर-तीर्थंकरों का, बलभद्र-बलभद्रों का, नारायण-नारायणों का और प्रतिनारायण-प्रतिनारायणों का परस्पर मिलाप नहीं होता। तुम (धातकी खंड का कपिल नामक नारायण) जाओगे तो चिह्न मात्र से ही उसका (कृष्ण नारायण का) और तुम्हारा मिलाप होगा। एक दूसरे के शंख का शब्द सुनना तथा रथों की ध्वजाओं का देखना इन्हीं चिह्नों से तुम्हारा उसका साक्षात्कार हो सकेगा।59-60।


5. शलाका पुरुषों के शरीर की विशेषता

तिलोयपण्णत्ति/4/1371 आदिमसंहण्ण जुदा सव्वे तवणिज्जवण्णवरदेहा। सयलसुलक्खण भरिया समचउरस्संगसंठाणा।1371। =सभी वज्रऋषभ नाराच संहनन से सहित, सुवर्ण के समान वर्ण वाले, उत्तमशरीर के धारक, संपूर्ण सुलक्षणों से युक्त और समचतुरस्र रूप शरीरसंस्थान से युक्त होते हैं।1371।

बोधपाहुड़/ टी./32/98 पर उद्धृत-देवा वि य णेरइया हलहरचक्की य तह य तित्थयरा। सव्वे केसव रामा कामानिक्कंचिया होंति।=सर्व देव, नारकी, हलधर (बलदेव), चक्रवर्ती, तीर्थंकर, केशव (नारायण) राम और कामदेव मूँछ-दाढ़ी से रहित होते हैं।

  1. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
    1. चक्रवर्ती का लक्षण
    2. नाम व पूर्वभव परिचय
    3. वर्तमान भव में नगर व माता पिता
    4. वर्तमान भव शरीर परिचय
    5. कुमारकाल आदि परिचय
    6. वैभव परिचय
    7. चौदह रत्न परिचय सामान्य
    8. चौदह रत्न परिचय विशेष
    9. नव निधि परिचय
    10. दश प्रकार भोग परिचय
    11. भरत चक्रवर्ती की विभूतियों के नाम
    12. दिग्विजय का स्वरूप
    13. राजधानी का स्वरूप
    14. हुंडावसर्पिणी में चक्रवर्ती के उत्पत्ति काल में कुछ अपवाद
    

2. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश


1. चक्रवर्ती का लक्षण

तिलोयपण्णत्ति/1/48 छक्खंड भरहणादो बत्तीससहस्समउडबद्धपहुदीओ। होदि हु सयलं चक्की तित्थयरो सयलभुवणवई।48। =जो छह खंडरूप भरतक्षेत्र का स्वामी हो और बत्तीस हज़ार मुकुट बद्ध राजाओं का तेजस्वी अधिपति हो वह सकल चक्री होता है।...।48। ( धवला 1/1,1,1/ गा.43/58) ( त्रिलोकसार/685 )


2. नाम व पूर्वभव परिचय

 

नाम

पूर्व भव नं. 2

पूर्वभव

महापुराण/ सर्ग/श्लो.

1.ति.प/4/515-516

2. त्रिलोकसार/815

3. पद्मपुराण/20/124-193

4. हरिवंशपुराण/60/286-287

5. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/124-193

2. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/124-193

2. महापुराण/ पूर्ववत्

नाम राजा

नगर

दीक्षागुरु

स्वर्ग

 

भरत

पीठ

पुंडरीकिणी

कुशसेन

सर्वार्थ सिद्धि

2 अच्युत

48/69-78

सगर

विजय

2 जयसेन

पृथिवीपुर

यशोधर

विजय वि.

61/91-101

मघवा

शशिप्रभ

2 नरपति

पुंडरीकिणी

विमल

ग्रैवेयक

62/101/106

सनत्कुमार

धर्मरुचि

महापुरी

सुप्रभ

माहेंद्र

2 अच्युत

63/384

शांति*

देखें तीर्थंकर

64/12-22

कुंथु*

देखें तीर्थंकर

65/14-30

अर*

देखें तीर्थंकर

65/56

सुभौम

कनकाभ

2 भूपाल

धान्यपुर

विचित्रगुप्त

2 संभूत

जयंत वि.

2 महाशुक्र

66/76-80

पद्म•

चिंत

2 प्रजापाल

वीतशोका

2 श्रीपुर

सुप्रभ

2 शिवगुप्त

ब्रह्मस्वर्ग

2 अच्युत

67/64-65

हरिषेण

महेंद्रदत्त

विजय

नंदन

माहेंद्र

2 सनत्कुमार

69/78-80

जयसेन

4 जय

अमितांग

2 वसुंधर

राजपुर

2 श्रीपुर

सुधर्ममित्र

2 वररुचि

ब्रह्मस्वर्ग

2 महाशुक्र

72/287-288

ब्रह्मदत्त

संभूत

काशी

स्वतंत्रलिंग

कमलगुल्म मि.

*शांति कुंथु और अर ये तीनों चक्रवर्ती भी थे और तीर्थंकर भी।

•प्रमाण नं. 2,3,4 के अनुसार इनका नाम महापद्म था। यह राजा पद्म उन्हीं विष्णुकुमार मुनि के बड़े भाई थे जिन्होंने 750 मुनियों की राजा बलि कृत उपसर्ग से रक्षा की थी।


3. वर्तमान भव में नगर व माता पिता

क्रम

महापुराण/ सर्ग/श्लो.

वर्तमान नगर

वर्तमान पिता

वर्तमान माता

तीर्थंकर

1. पद्मपुराण/20/125-193

2. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/124-193

2. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/124-193

2. महापुराण/ पूर्ववत्

सामान्य

विशेष

सामान्य

विशेष

सामान्य

विशेष

 

 

 

पद्मपुराण

 

पद्मपुराण

 

पद्मपुराण

देखें तीर्थंकर

1

 

अयोध्या

 

ऋषभ

 

यशस्वती

मरुदेवी

2

48/69-78

अयोध्या

 

विजय

समुद्रविजय

सुमंगला

सुबाला

3

61/91-101

श्रावस्ती

अयोध्या

सुमित्र

 

भद्रवती

भद्रा

4

61/104-106

हस्तिनापुर

अयोध्या

विजय

अनंतवीर्य

सहदेवी

 

5

63/384,413

  ―

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देखें तीर्थंकर

 

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  ―

6

64/12-22

  ―

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देखें तीर्थंकर

 

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  ―

7

65/14-30

  ―

Clip image098.gif

देखें तीर्थंकर

 

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  ―

8

65/56,152

दृशावती

अयोध्या

कीर्तिवीर्य

सहस्रबाहु

तारा

चित्रमती

9

66/76-80

हस्तिनापुर

वाराणसी

पद्मरथ

पद्मनाभ

मयूरी

 

10

67/64-65

कांपिल्य

भोगपुर

पद्मनाभ

हरिकेतु

वप्रा

एरा

11

69/78-80

कांपिल्य

कौशांबी

विजय

 

यशोवती

प्रभाकरी

12

72/287-288

कांपिल्य

  ×

ब्रह्मरथ

ब्रह्मा

चूला

चूड़ादेवी


4. वर्तमान भव शरीर परिचय

क्र.

महापुराण/ सर्ग/श्लोक/सं.

वर्ण

संस्थान

संहनन

शरीरोत्सेध

आयु    

 

तिलोयपण्णत्ति/4/1371

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1292-1293

2. त्रिलोकसार/818-819

3. हरिवंशपुराण/60/306-309

4. महापुराण/ पूर्व शीर्षवत्

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1295-1296

2. त्रिलोकसार/819-820

3. हरिवंशपुराण/60/494-516

4. महापुराण/ पूर्व शीर्षवत्

 

सामान्य

प्रमाण नं.

विशेष

सामान्य

प्रमाण नं.

विशेष

 

 

 

 

 

धनुष

 

धनुष

 

 

 

1

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

500

 

 

84 लाख पूर्व      

 

 

2

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

450

 

 

72 लाख पूर्व      

4

70 लाख पूर्व      

3

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

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5 लाख पूर्व      

 

 

4

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

42

2

4

41Clip image6.gif 42Clip image6.gif

3 लाख पूर्व      

 

 

5

 

 ―

 ―

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देखें तीर्थं

 

(शांति)

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 ―

 ―

6

 

 ―

 ―

 Clip image098.gif

देखें तीर्थं

 

(कुंथु)

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 ―

 ―

7

 

 ―

 ―

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देखें तीर्थं

 

(अरह)

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 ―

 ―

8

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

28

 

 

60,000 वर्ष

3

68,000 वर्ष

9

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

22

 

 

30,000 वर्ष

 

 

10

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

20

4

24

10,000 वर्ष

3

26,000 वर्ष

11

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

15

3

14

3,000 वर्ष

 

 

12

 

स्वर्ण

समचतुरस्र

वज्रऋषभ नाराच

7

4

60

700 वर्ष

 

 


5. कुमारकाल आदि परिचय

ला.=लाख; पू.=पूर्व

क्रम

कुमार काल

मंडलीक

दिग्विजय

राज्य काल

संयम काल

मर कर कहाँ गये

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1297-1299 हरिवंशपुराण/60/ 494-516

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1300-1302 हरिवंशपुराण/60/ 494-516

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1368-1369 हरिवंशपुराण/60/ 494-516

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1401-1405 हरिवंशपुराण/60/ 494-516

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1407-1409 हरिवंशपुराण/60/ 494-516

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1410

2. त्रिलोकसार/824

3. पद्मपुराण/20/124-193

4. महापुराण/ देखें शीर्षक सं - 2

सामान्य

विशेष

हरिवंशपुराण

सामान्य

विशेष

महापुराण

1

77,000 वर्ष

1,000 वर्ष

60,000 वर्ष

6 लाख पूर्व 61000 वर्ष

6 लाख पूर्व 1 पूर्व

1 लाख पूर्व•

मोक्ष

 

2

50,000 वर्ष

50,000 वर्ष

30,000 वर्ष

70लाख पूर्व 30000 वर्ष

6970000पूर्व +99999 पूर्वांग+83 लाख वर्ष

1 लाख पूर्व

 

 

3

25,000 वर्ष

25,000 वर्ष

10,000 वर्ष

39000 वर्ष

 

50000 वर्ष

सनत्कुमार स्वर्ग

मोक्ष

4

50,000 वर्ष*

50,000 वर्ष*

10,000 वर्ष

90000 वर्ष

 

1 लाख वर्ष

सनत्कुमार स्वर्ग

मोक्ष

5

 

 

 

 

 

 

 

 

6

 

 

 

 

 

 

 

 

7

 

 

 

 

 

 

 

 

8

5,000 वर्ष

5,000 वर्ष**

500 वर्ष

49500 वर्ष

62500 वर्ष

0

7वें नरक

 

9

500 वर्ष

500 वर्ष

300 वर्ष

18700 वर्ष

 

10000 वर्ष

मोक्ष

 

10

325 वर्ष

325 वर्ष

150 वर्ष

8850 वर्ष

25175 वर्ष

350 वर्ष

मोक्ष

सर्वार्थ सिद्धि

11

300 वर्ष

300 वर्ष

100 वर्ष

1900 वर्ष

 

400 वर्ष

मोक्ष

जयंत

12

28 वर्ष

56 वर्ष

16 वर्ष

600 वर्ष

 

0

7वें नरक

 

• हरिवंशपुराण में भरत का संयम काल 1 लाख+(1 पूर्व–1 पूर्वांग)+8309030 वर्ष दिया है।

* हरिवंशपुराण व महापुराण में सगर का कुमार व मंडलीक काल 18 लाख पूर्व दिया गया है।

** हरिवंशपुराण की अपेक्षा सुभौम चक्रवर्ती को राज्यकाल प्राप्त नहीं हुआ।


6. वैभव परिचय

1. ( तिलोयपण्णत्ति/4/1372-1397 ); 2. ( त्रिलोकसार/682 ); 3. ( हरिवंशपुराण/11/108-162 ) 4. ( महापुराण/37/23-37,59-81,181-185 ); 5. ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/7/43-54,65-67 )।

क्रम

नाम

गणना सामान्य

प्रमाण नं.

गणना विशेष   

1

रत्न

14

(देखें आगे )

2

निधि   

9

(देखें आगे )

3

रानियाँ

 

 

 

i

आर्य खंड की राजकन्याएँ

32,000

 

 

ii

विद्याधर राजकन्याएँ

32,000

 

 

iii

म्लेच्छ राजकन्याएँ

32,000

 

 

96,000

4

पटरानी

1

 

 

5

पुत्र पुत्री

संख्यात सहस्र

3

भरत के 500 पुत्र थे       

 

 

 

4

सगर के 60,000 पुत्र     

 

 

 

4

पद्म के 8 पुत्री थीं           

6

गणबद्ध देव      

32,000

3,4

16000

7

तनुरक्षक देव   

360

 

 

8

रसोइये

360

 

 

9

यक्ष

32

 

 

10

यक्षों का बंधु कुल

350 लाख

 

 

11

भेरी

12

 

 

12

पटह (नगाड़े)

12

 

 

13

शंख

24

 

 

14

हल

1 कोड़ाकोड़ी

हरिवंशपुराण 4

1 करोड़ 1 लाख करोड़

15

गौ

3 करोड़

 

 

16

गौशाला

 

4

3 करोड़

17

थालियाँ

1 करोड़

4

1 करोड़

18

हंडे

 

 

 

19

गज

84 लाख

 

 

20

रथ

84 लाख

 

 

21

अश्व

18 करोड़

 

 

22

योद्धा

84 करोड़

 

 

23

विद्याधर

अनेक करोड़

 

 

24

म्लेच्छ राजा

88000

4

18000

25

चित्रकार

99000

3

99000

26

मुकुट बद्ध राजा

3200

 

 

27

नाट्यशाला

32000

 

 

28

संगीतशाला

32000

 

 

29

पदाति

48 करोड़

 

 

30

देश

32000

 

 

31

ग्राम

96 करोड़

 

 

32

नगर

75000

4

5

72000

26000

33

खेट

16000

 

 

34

खर्वट

24000

5

34000

35

मटंब

4000

 

 

36

पट्टन

48000

 

 

37

द्रोणमुख

99000

 

 

38

संवाहन

14000

 

 

39

अंतर्द्वीप

56

 

 

40

कुक्षि निवास

700

 

 

41

दुर्गादिवन

28000

 

 

42

पताकाएँ

 

4

48 करोड़

43

भोग

10 प्रकार

 

 

44

पृथिवी

षट् खंड

 

 


7. चौदह रत्न परिचय सामान्य

क्रम

निर्देश

संज्ञा

उत्पत्ति

दृष्टि भेद

विशेषता

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1376-1381

2. त्रिलोकसार/823

3. हरिवंशपुराण/11/108-109 4 . महापुराण/83-86

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1377-1381

2. देखें आगे शीर्षक सं - 11

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1378-1380

2. त्रिलोकसार/823

3. महापुराण/37/85-86

नाम

क्या है

सामान्य

विशेष

प्रमाण नं.2

सामान्य

विशेष

प्रमाण नं.2

1

चक्र

आयुध

सुदर्शन

 

आयुधशाला

 

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1382 किन्हीं आचार्यों के मत से इनकी उत्पत्ति का नियम नहीं। यथायोग्य स्थानों में उत्पत्ति।

देखें पृ अगला शीर्षक।

2

छत्र

छतरी

सूर्यप्रभ

 

आयुधशाला

 

3

खड्ग

आयुध

भद्रमुख

सौनंदक

आयुधशाला

 

4

दंड

अस्त्र

प्रवृद्धवेग

चंडवेग

आयुधशाला

 

5

काकिणी

अस्त्र

चिंता जननी

 

श्री गृह

 

6

मणि

रत्न

चूड़ामणि

 

श्री गृह

 

7

चर्म

तंबू

 

 

श्री गृह

 

8

सेनापति

 

आयोध्य

 

राजधानी

विजयार्ध

9

गृहपति

भंडारी

भद्रमुख

कामवृष्टि ( हरिवंशपुराण/11/123 )

राजधानी

विजयार्ध

10

गज

हाथी

विजयगिरि

 

विजयार्ध

विजयार्ध

11

अश्व

 

पवनंजय

 

विजयार्ध

विजयार्ध

12

पुरोहित

 

बुद्धिसागर

 

राजधानी

विजयार्ध

13

स्थपति

तक्षक(बढ़ई)

कामवृष्टि

 

राजधानी

विजयार्ध

14

युवती

पटरानी

सुभद्रा

 

विजयार्ध

विजयार्ध


8. चौदह रत्न परिचय विशेष

क्रम

 

जीव अजीव

काहे से बने

विशेषताएँ

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1377-1379 2 . महापुराण/37/84

तिलोयपण्णत्ति/4/1381

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.; 2. त्रिलोकसार/823;

3. महापुराण/37/ श्लो.; 4. जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/7/ गा.

1

चक्र

अजीव

वज्र

शत्रु संहार

2

छत्र

अजीव

वज्र

12 योजन लंबा और इतना ही चौड़ा है। वर्षा से कटक की रक्षा करता है।4/140-141।

3

खड्ग

अजीव

वज्र

शत्रु संहार

4

दंड

अजीव

वज्र

विजयार्ध गुफा द्वार उद्धाटन।1/1330; 2/4/124। गुफा के कांटों आदि का शोधन।3/170। वृषभाचल पर चक्रवर्ती का नाम लिखना।1/1354।

5

काकिणी

अजीव

वज्र

विजयार्ध की गुफाओं का अंधकार दूर करना।1/1339;3/173। वृषभाचल पर नाम लिखना।2।

6

मणि

अजीव

वज्र

विजयार्ध की गुफा में उजाला करना।

7

चर्म

अजीव

वज्र महापुराण/37/171

म्लेच्छ राजा कृत जल के ऊपर तैरकर अपने ऊपर सारे कटक को आश्रय देता है। (2;3/171;4/140)

8

सेनापति

जीव

 

 

9

गृहपति

जीव

 

हिसाब किताब आदि रखना।3/176।

10

गज

जीव

 

 

11

अश्व

जीव

 

 

12

पुरोहित

जीव

 

दैवी उपद्रवों की शांति के अर्थ अनुष्ठान करना। (3/175)

13

स्थपति

जीव

 

नदी पर पुल बनाना। (1/1342;4/131) मकान आदि बनाना।3/177।

14

युवती

जीव

 

नोट– हरिवंशपुराण 11/109 ।

इन रत्नों में से प्रत्येक की एक-एक हजार देव रक्षा करते थे।


9. नव निधि परिचय

क्रम

1. निर्देश

2. उत्पत्ति

3. क्या प्रदान करती है

विशेष

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1384

2. त्रिलोकसार/821

3. हरिवंशपुराण/11/1- 110-111

4. महापुराण/37/75-82

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1384

2. तिलोयपण्णत्ति/4/1385

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1386

2. त्रिलोकसार/822

3. हरिवंशपुराण/11/114-122

4. महापुराण/37/75-82

 

दृष्टि सं.1

दृष्टि सं.2

सामान्य

प्रमाण सं.

विशेष

1

काल

श्रीपुर

नदीमुख

ऋतु के अनुसार पुष्प फल आदि

3,4

निमित्त, न्याय, व्याकरण आदि विषयक अनेक प्रकार के शास्त्र

देखें नीचे

 

 

 

 

 

4

बाँसुरी, नगाड़े आदि पंचेंद्रिय के मनोज्ञ विषय

2

महाकाल

श्रीपुर

नदीमुख

भाजन

3

पंचलोह आदि धातुएँ

 

 

 

 

 

4

असि, मसि आदि के साधनभूत द्रव्य

3

पांडु

श्रीपुर

नदीमुख

धान्य

4

धान्य तथा गट्रस

4

मानव

श्रीपुर

नदीमुख

आयुध

4

नीति व अन्य अनेक विषयों के शास्त्र

5

शंख

श्रीपुर

नदीमुख

वादित्र

 

 

6

पद्म

श्रीपुर

नदीमुख

वस्त्र

 

 

7

नैसर्प

श्रीपुर

नदीमुख

हर्म्य (भवन)

3, 4

शय्या, आसन, भाजन आदि उपभोग्य वस्तुएँ

8

पिंगल

श्रीपुर

नदीमुख

आभरण

 

 

9

नानारत्न

श्रीपुर

नदीमुख

अनेक प्रकार के रत्न आदि

 

 


4. विशेषताएँ

हरिवंशपुराण/11/111-113,123 अमी...निधयोऽनिधना नव। पालिता निधिपालाख्यै: सुरैर्लोकोपयोगिन:।111। शकटाकृतय: सर्वे चतुरक्षाष्टचक्रका:। नवयोजनविस्तीर्णा द्वादशायामसंमिता:।112। ते चाष्टयोजनागाधा बहुवक्षारकुक्षय:। नित्यं यक्षसहस्रेण प्रत्येकं रक्षितेक्षिता:।113। कामवृष्टिवशास्तेऽमी नवापि निधय: सदा। निष्पादयंति नि:शेषं चक्रवर्तिमनीषितम् ।123। =ये सभी निधियाँ अविनाशी थीं। निधिपाल नाम के देवों द्वारा सुरक्षित थीं। और निरंतर लोगों के उपकार में आती थीं।111। ये गाड़ी के आकार की थीं। 9 योजन चौड़ी, 12 योजन लंबी, 8 योजन गहरी और वक्षार गिरि के समान विशाल कुक्षि से सहित थीं। प्रत्येक की एक-एक हज़ार यक्ष निरंतर देखरेख रखते थे।112-113। ये नौ की नो निधियाँ कामवृष्टि नामक गृहपति (9वाँ रत्न) के अधीन थीं। और सदा चक्रवर्ती के समस्त मनोरथों को पूर्ण करती थीं।123।

10. दश प्रकार भोग परिचय

तिलोयपण्णत्ति/4/1397 –दिव्वपुरं रयणणिहिं चमुभायण भोयणाइं सयणिज्जं। आसणवाहणणट्टा दसंग भोग इमे ताणं।1397। =दिव्वपुर (नगर), रत्न, निधि, चमू (सैन्य) भाजन, भोजन, शय्या, आसन, वाहन, और नाट्य ये उन चक्रवर्तियों के दशांग भोग होते हैं।1397। ( हरिवंशपुराण/11/131 ); ( महापुराण/37/143 )।

11. भरत चक्रवर्ती की विभूतियों के नाम

महापुराण/37/ श्लोक सं.

क्रम

श्लोक सं.

विभूति

नाम    

1

146

घर का कोट

क्षितिसार

2

146

गौशाला

सर्वतोभद्र

3

147

छावनी

नंद्यावर्त

4

147

ऋतुओं के लिए महल

वैजयंत

5

147

सभाभूमि

दिग्वसतिका

6

148

टहलने की लकड़ी

सुविधि

7

149

दिशा प्रेक्षण भवन

गिरि कूटक

8

149

नृत्यशाला

वर्धमानक

9

150

शीतगृह

धारागृह

10

150

वर्षा ऋतु निवास

गृहकूटक

11

151

निवास भवन

पुष्करावती

12

151

भंडार गृह

कुबेरकांत

13

152

कोठार

वसुधारक

14

152

स्नानगृह

जीमूत

15

153

रत्नमाला

अवतंसिका

16

153

चाँदनी

देवरम्या

17

154

शय्या

सिंहवाहिनी

18

155

चमर

अनुपमान

19

156

छत्र

सूर्यप्रभ

20

157

कुंडल

विद्युत्प्रभ

21

158

खड़ाऊँ

विषमोचिका

22

159

कवच

अभेद्य

23

160

रथ

अजितंजय

24

161

धनुष

वज्रकांड

25

162

बाण

अमोघ

26

163

शक्ति

वज्रतुंडा

27

164

माला

सिंघाटक

28

165

छुरी

लोह वाहिनी

29

166

कणप (अस्त्र विशेष)

मनोवेग

30

167

तलवार

सौनंदक

31

168

खेट (अस्त्र विशेष)

भूतमुख

32

169

चक्र

सुदर्शन

33

170

दंड

चंडवेग

34

172

चिंतामणि रत्न

चूड़ामणि

35

173

काकिणी (दीपिका)

चिंताजननी

36

174

सेनापति

अयोघ्य

37

175

पुरोहित

बुद्धिसागर

38

176

गृहपति

कामवृष्टि

39

177

शिलावट (स्थपित)

भद्रमुख

40

178

गज

विजयगिरि (धवल वर्ण)

41

179

अश्व

पवनंजय

42

180

स्त्री

सुभद्रा

43

182

भेरी

आनंदिनी (12 योजन शब्द) ( महापुराण/37/182 )

44

184

शंख

गंभीरावर्त

45

185

कड़े

वीरानंद

46

187

भोजन

महाकल्याण

47

188

खाद्य पदार्थ

अमृतगर्भ

48

189

स्वाद्यपदार्थ

अमृतकल्प

49

189

पेय पदार्थ

अमृत


12. दिग्विजय का स्वरूप

तिलोयपण्णत्ति/4/1303-1369 का भावार्थ ―
आयुधशाला में चक्र की उत्पत्ति हो जाने पर चक्रवर्ती जिनेंद्र पूजन पूर्वक दिग्विजय के लिए प्रयाण करता है।1303-1304।
पहले पूर्व दिशा की ओर जाकर गंगा के किनारे-किनारे उपसमुद्र पर्यंत जाता है।1305।
रथ पर चढ़कर 12 योजन पर्यंत समुद्र तट पर प्रवेश करके वहाँ से अमोघ नामा बाण फेंकता है, जिसे देखकर मागध देव चक्रवर्ती की अधीनता स्वीकार कर लेता है।1306-1314।
यहाँ से जंबूद्वीप की वेदी के साथ-साथ उसके वैजयंत नामा दक्षिण द्वार पर पहुँचकर पूर्व की भाँति ही वहाँ रहने वाले वरतनुदेव को वश करता है।1315-1316।
यहाँ से वह पश्चिम दिशा की ओर जाता है और सिंधु नदी के द्वार में स्थित प्रभासदेव को पूर्ववत् ही वश करता है।1317-1318।
तत्पश्चात् नदी के तट से उत्तर मुख होकर विजयार्ध पर्वत तक जाता है। और पर्वत के रक्षक वैताढ्य नामा देव को वश करता है।1319-1323।
तब सेनापति दंड रत्न से उस पर्वत की खंडप्रपात नामक पश्चिम गुफा को खोलता है।1325-1330।
गुफा में से गर्म हवा निकलने के कारण वह पश्चिम के म्लेच्छ राजाओं को वश करने के लिए चला जाता है। छह महीने में उन्हें वश करके जब वह अपने कटक में लौट आता है तब तक उस गुफा की वायु भी शुद्ध हो चुकती है।1331-1336।
अब सर्व सैन्य को साथ लेकर वह गुफा में प्रवेश करता है, और काकिणी रत्न से गुफा के अंधकार को दूर करता है। और स्थपति रत्न गुफा में स्थित उन्मग्नजला नदी पर पुल बाँधता है। जिसके द्वारा सर्व सैन्य गुफा से पार हो जाती है।1337-1341।
यहाँ पर सेना को ठहराकर पहले सेनापति पश्चिम खंड के म्लेच्छ राजाओं को जीतता है।1345-1348।
तत्पश्चात् हिमवान पर्वत पर स्थित हिमवानदेव से युद्ध करता है। देव के द्वारा अतिघोर वृष्टि की जाने पर छत्र रत्न व चर्म रत्न से सैन्य की रक्षा करता हुआ उस देव को भी जीत लेता है।1349-1350।
अब वृषभगिरि पर्वत के निकट आता है। और दंडरत्न द्वारा अन्य चक्रवर्ती का नाम मिटाकर वहाँ अपना नाम लिखता है।1351-1355।
यहाँ से पुन: पूर्व में गंगा नदी के तट पर आता है, जहाँ पूर्ववत् सेनापति दंड रत्न द्वारा तमिस्रा गुफा के द्वार को खोलकर छह महीने में पूर्वखंड के म्लेच्छ राजाओं को जीतता है।1356-1358।
विजयार्ध की उत्तर श्रेणी के 60 विद्याधरों को जीतने के पश्चात् पूर्ववत् गुफा द्वार से पर्वत को पार करता है।1359-1365।
यहाँ से पूर्वखंड के म्लेच्छ राजाओं को छह महीने में जीतकर पुन: कटक में लौट आता है।1366।
इस प्रकार छह खंडों को जीतकर अपनी राजधानी में लौट आता है। ( हरिवंशपुराण/11/1-56 ); ( महापुराण/26-36 पर्व/पृ.1-220); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/7/115-151 )।

13. राजधानी का स्वरूप

ति.सा./716-717 रयणकवाडवरावर सहस्सदलदार हेमपायारा। बारसहस्सा वीही तत्थ चउप्पह सहस्सेक्कं।716। णयराण बहिं परिदो वणाणि तिसद ससट्ठि पुरमज्झे। जिणभवणा णरवइ जणगेहा सोहंति रयणमया।717।

राजधानी में स्थित नगरों के (देखें मनुष्य - 4) रत्नमयी किवाड़ हैं। उनमें बड़े द्वारों की संख्या 1000 है और छोटे 500 द्वार हैं। सुवर्णमयी कोट है। नगर के मध्य में 12000 वीथी और 1000 चौपथ हैं।716। नगरों के बाह्य चौगिर्द 360 बाग हैं। और नगर के मध्य जिनमंदिर, राजमंदिर व अन्य लोगों के मंदिर रत्नमयी शोभते हैं।...।717।

14. हुंडावसर्पिणी में चक्रवर्ती के उत्पत्ति काल में कुछ अपवाद

तिलोयपण्णत्ति/4/1616-1618 ...सुसमदुस्समकालस्स ठिदिम्मि थोअवसेसे।1616। तक्काले जायते...पढमचक्की य।1617। चक्किस्सविजयभंगो।

हुंडावसर्पिणी काल में कुछ विशेषता है। वह यह कि इस काल में चौथा काल शेष रहते ही प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हो जाता है। (यद्यपि चक्रवर्ती की विजय कभी भंग नहीं होती। परंतु इस काल में उसकी विजय भी भंग होती है।)



नव बलदेव निर्देश

1. पूर्व भव परिचय

क्रम

 

नाम निर्देश

द्वितीय पूर्व भव

प्रथम पूर्व भव (स्‍वर्ग)

1. तिलोयपण्णत्ति/4/517,1411

2. त्रिलोकसार/827

3. पद्मपुराण/20/242 टिप्पणी

4. हरिवंशपुराण/60/290

5. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/229-235

2. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/236-237

2. महापुराण/ पूर्ववत्

सामान्‍य

विशेष पद्मपुराण

नाम

नगर

दीक्षा गुरु

स्‍वर्ग

1

57/86

विजय

 

बल (विशाखभूति)

पुण्‍डरीकिणी

अमृतसर

अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र

2

58/80-83

अचल

 

मारुतवेग

पृथ्‍वीपुरी

महासुव्रत

अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र

3

59/71,106

धर्म

भद्र

नंदिमित्र

आनन्‍दपुर

सुव्रत

अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र

4

60/58-63

सुप्रभ

 

महाबल

नन्‍दपुरी

ऋषभ

सहस्रार

5

61/70,87

सुदर्शन

 

पुरुषर्षभ

वीतशोका

प्रजापाल

सहस्रार

6

65/174-176

नन्‍दीषेण

नंदिमित्र

सुदर्शन

विजयपुर

दमवर

सहस्रार

7

66/106-107

नंदिमित्र

नंदिषेण

वसुन्‍धर

सुसीमा

सुधर्म

ब्रह्म

2 सौधर्म

8

67/148-149

68/731

राम

पद्म

श्रीचन्‍द्र

2 विजय

क्षेमा

2 मलय

अर्णव

ब्रह्म

2 सनत्‍कुमार

9

 

पद्म

बल

सखिसज्ञ

हस्तिनापुर

विद्रुम

महाशुक्र


2. वर्तमान भव के नगर व माता पिता

क्रम

महापुराण/ सर्ग/श्‍लो.

नगर

पिता

माता

गुरु

तीर्थ

  महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/238-239

2. महापुराण/ पूर्ववत्

1. पद्मपुराण/20/236-237

2. महापुराण/ पूर्ववत्

 

सामान्‍य

विशेष

महापुराण

महापुराण

1

57/86

पोदनपुर

प्रजापति

भद्राम्‍भोजा

जयवती

सुवर्णकुम्‍भ

देखें तीर्थंकर

2

58/80-83

द्वारावती

ब्रह्म

सुभद्रा

सुभद्रा

सत्‍कीर्ति

3

59/71,106

द्वारावती

भद्र

सुवेषा

सुभद्रा

सुधर्म

4

60/58-63

द्वारावती

सोमप्रभ

सुदर्शना

जयवन्‍ती

मृगांक

5

61/70,87

खगपुर

सिंहसेन

सुप्रभा

विजया

श्रुतिकीर्ति

6

65/174-176

चक्रपुर

वरसेन

विजया

वैजयन्‍ती

सुमित्र

2. शिवघोष

7

66/106-107

बनारस

अग्निशिख

वैजयन्‍ती

अपराजिता

भवनश्रुत

8

67/148-149

68/731

बनारस

दशरथ (164)

अपराजिता (काशिल्‍या)

सुबाला

सुव्रत

9

 

पीछे अयोध्‍या

वसुदेव

रोहिणी

 

सुसिद्धार्थ


3. वर्तमान भव परिचय

क्रम

महापुराण/ सर्ग/श्‍लोक

शरीर

उत्‍सेध

आयु

निर्गमन

तिलोयपण्णत्ति/4/1371

तिलोयपण्णत्ति/4/1818; त्रिलोकसार/829

हरिवंशपुराण/60/310; महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1419-1420

2. त्रिलोकसार/831

3. महापुराण/ पूर्ववत्

तिलोयपण्णत्ति/4/1437

त्रिलोकसार/833

पद्मपुराण/20/248

वर्ण

संस्‍थान

संहनन

सामान्‍य धनुष

प्रमाण

विशेष धनुष

सामान्‍य

वर्ष

प्रमाण सं.

विशेष

वर्ष

1

57/89-90

तिलोयपण्णत्ति =स्‍वर्ण; महापुराण = सफेद

समचतुरस्र

वज्र ऋषभ नाराच

80

 

 

87 लाख

3

84 लाख

मोक्ष

2

58/89

70

 

 

77 लाख

 

 

मोक्ष

3

59/-

60

 

 

67 लाख

 

 

मोक्ष

4

60/68-69

50

3

55

37 लाख

3

30 लाख

मोक्ष

5

61/71

45

3

40

17 लाख

3

10 लाख

मोक्ष

6

65/177-178

29

3,4

26

67000 वर्ष

3

56000 वर्ष

मोक्ष

7

66/108

22

 

 

37000 वर्ष

3

32000 वर्ष

मोक्ष

8

67/154

16

4

13

17000 वर्ष

3

13000 वर्ष

मोक्ष

9

 

10

 

 

12000 वर्ष

3

1200 वर्ष

ब्रह्म स्‍वर्ग

कृष्‍ण के तीर्थ में मोक्ष प्राप्त करेंगे।


4. बलदेव का वैभव

महापुराण/68/667-674 सीताद्यष्टसहस्राणि रामस्‍य प्राणवल्‍लभा:। द्विगुणाष्टसहस्राणि देशास्‍तावन्‍महीभुज:।667। शून्‍यं पंचाष्टरन्‍ध्रोक्तख्‍याता द्रोणमुखा: स्‍मृता:। पत्तनानि सहस्राणि पंचविंशतिसंख्‍यया।668। कर्वटा: खत्रयद्वयेकप्रमिता:, प्रार्थितार्थदा:। मटम्‍बास्‍तत्‍प्रमाणा: स्‍यु: सहस्राण्‍यष्ट खेटका:।669। शून्‍यसप्तकवस्‍वब्धिमिता ग्रामा महाफला:। अष्टाविंशमिता द्वीपा: समुद्रान्‍तर्वतिन:।670। शून्‍यपंचकपक्षाब्धिमितास्‍तुंगमतंगजा:। रथवर्यास्‍तु तावन्‍तो नवकोट्यस्‍तुरंगमा:।671। खसप्तकद्विर्वार्घ्‍युक्ता युद्धशौण्‍डा: पदातय:। देवाश्चाष्टसहस्राणि गणबद्धाभिमानका:।672। हलायुधं महारत्‍नमपराजितनामकम् । अमोघाख्‍या: शरास्‍तीक्ष्‍णा: संज्ञया कौमुदी गदा।673। रत्‍नावतंसिका माला रत्‍नान्‍येतानि सौरिण:। तानि यक्षसहस्रेण रक्षितानि पृथक्‍‍-पृथक् ।674। = रामचन्‍द्र जी (बलदेव) के 8000 रानियाँ, 16000 देश, 16000 आधीन राजा, 9850 द्रोणमुख, 25000 पत्तन, 12000 कर्वट, 12000 मटंब, 8000 खेटक, 48 करोड़ गाँव, 28 द्वीप, 42 लाख हाथी, 42 लाख रथ; 9 करोड़ घोड़े, 42 करोड़ पदाति, 8000 गणबद्ध देव थे।666-672। रामचन्‍द्र जी के अपराजित नाम का ‘हलायुध’ अमोघ नाम के तीक्ष्‍ण ‘बाण’, कौमुदी नाम की ‘गदा’ और रत्‍नावतंसिका नाम की ‘माला’ ये चार महारत्‍न थे। इन सब रत्‍नों की एक-एक हज़ार यक्ष देव रक्षा करते थे।672-674। ( तिलोयपण्णत्ति/4/1435 ); ( त्रिलोकसार/825 ); ( महापुराण/57/90-94 )।

5. बलदेवों सम्‍बन्‍धी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1436 अणिदाणगदा सव्‍वे बलदेवा केसवा णिदाणगदा। उड्‍ढंगामी सव्‍वे बलदेवा केसवा अधोगामी।1436।

सब बलदेव निदान से रहित होते हैं और सभी बलदेव ऊर्ध्‍वगामी अर्थात् स्‍वर्ग व मोक्ष को जाने वाले होते हैं। ( धवला 9/1,9-9,243/500/9 ); ( हरिवंशपुराण/60/293 )।

शलाका पुरुष/1/2-5 बलदेवों का परस्‍पर मिलान नहीं होता, तथा एक क्षेत्र में एक समय में एक ही बलदेव होता है।

नव नारायण निर्देश

1. पूर्व भव परिचय

क्र.

1. नाम

2. द्वितीय पूर्व भव

3. प्रथम पूर्व भव

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1412,518

2. त्रिलोकसार/825

3. पद्मपुराण/20/227 टिप्पणी

4. हरिवंशपुराण/60/288-289

5. महापुराण/ सर्ग/श्‍लो.

1. पद्मपुराण/20/206-217

2. महापुराण/ पूर्ववत्

नीचे वाले नाम पद्मपुराण में से दिये गये हैं। महापुराण के नामों में कुछ अन्‍तर है।

1. पद्मपुराण/20/218-220

2. महापुराण/ पूर्ववत्

 

 

नाम

नाम    

नगर    

दीक्षा गुरु           

स्‍वर्ग

1

57/83-85

त्रिपृष्ठ

विश्‍वनन्‍दी

हस्तिनापुर

सम्‍भूत

महाशुक्र

2

58/84

द्विपृष्ठ

पर्वत

अयोध्‍या

सुभद्र

प्राणत

3

59/85-86

स्‍वयंभू

धनमित्र

श्रावस्‍ती

वसुदर्शन

लान्‍तव

4

60/66,50

पुरुषोत्तम

सागरदत्त

कौशाम्‍बी

श्रेयांस

सहस्रार

5

61/71,85

पुरुषसिंह

विकट

पोदनपुर

सुभूति

ब्रह्म (2 माहेन्‍द्र)

6

65/174-176

पुरुषपंडरीक

प्रियमित्र

शैलनगर

वसुभूति

माहेन्‍द्र (2 सौधर्म)

7

66/106-107

दत्त

(2,5 पुरुषदत्त)

मानसचेष्टित

सिंहपुर

घोषसेन

सौधर्म

8

67/150

नारायण

(3,5 लक्ष्‍मण)

पुनर्वसु

कौशाम्‍बी

पराम्‍भोधि

सनत्‍कुमार

9

70/388

कृष्‍ण

गंगदेव

हस्तिनापुर

द्रुमसेन

महाशुक्र


2. वर्तमान भव के नगर व माता पिता ( पद्मपुराण/20/221-228 ), ( महापुराण/ पूर्व शीर्षवत्‍‍)

क्र.

4. नगर

5. पिता

6. माता

7. पटरानी

8. तीर्थ

पद्मपुराण

महापुराण

महापुराण

पद्मपुराण

पद्मपुराण व महापुराण

पद्मपुराण व महापुराण

1

पोदनपुर

पोदनपुर

प्रजापति

प्रजापति

मृगावती

सुप्रभा

देखें तीर्थंकर

2

द्वापुरी

द्वारावती

ब्रह्म

ब्रह्मभूति

माधवी (ऊषा)

रूपिणी

3

हस्तिनापुर

द्वारावती

भद्र

रौद्रनाद

पृथिवी

प्रभवा

4

हस्तिनापुर

द्वारावती

सोमप्रभ

सोम

सीता

मनोहरा

5

चक्रपुर

खगपुर

सिंहसेन

प्रख्‍यात

अंबिका

सुनेत्रा

6

कुशाग्रपुर

चक्रपुर

वरसेन

शिवाकर

लक्ष्‍मी

विमलसुन्‍दरी

7

मिथिला

बनारस

अग्निशिख

सममूर्धाग्निनाद

कोशिनी

आनन्‍दवती

8

अयोध्‍या

बनारस

(पीछेअयोध्‍या) 67/164

दशरथ

दशरथ

कैकेयी

प्रभावती

9

मथुरा

मथुरा

वसुदेव

वसुदेव

देवकी

रुक्‍मिणी


3 वर्तमान शरीर परिचय

क्रम

महापुराण/ सर्ग/ श्‍लो.

9. शरीर

10. उत्‍सेध

11. आयु

तिलोयपण्णत्ति/4/1371

महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1418; 2 . त्रिलोकसार/829

3. हरिवंशपुराण/60/310-312;

4. महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1421-1422

2. त्रिलोकसार/830

3. हरिवंशपुराण/60/517-533

4. महापुराण/ पूर्ववत्

वर्ण

संस्‍थान

संहनन

सामान्‍य

प्रमाण सं.

विशेष

1

57/89-90

तिलोयपण्णत्ति ― स्वर्णवत् / महापुराण ―नील व कृष्ण

तिलोयपण्णत्ति ―समचतुरस्र संस्‍थान

तिलोयपण्णत्ति ―वज्रऋषभ नाराच संहनन

80 धनुष

 

 

84 लाख वर्ष

2

58/89

70 धनुष

 

 

72 लाख वर्ष

3

59/-

60 धनुष

 

 

60 लाख वर्ष

4

60/68-69

50 धनुष

3

55 धनुष

30 लाख वर्ष

5

61/71

45 धनुष

3

40 धनुष

10 लाख वर्ष

6

65/177-178

29 धनुष

3,4

26 धनुष

65000 वर्ष

4(56000) वर्ष

7

66/108

22 धनुष

 

 

32000 वर्ष

8

67/151-154

16 धनुष

4

12 धनुष

12000 वर्ष

9

71/123

10 धनुष

 

 

1000 वर्ष


4. कुमार काल आदि परिचय

क्रम

महापुराण/ सर्ग/ श्‍लो.

12. कुमार काल

13.मण्‍डलीक काल

14. विजय काल

15. राज्‍य काल

16. निर्गमन

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1424-1433

2. हरिवंशपुराण/60/517-533

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1425-1436

2. हरिवंशपुराण/60/517-533

तिलोयपण्णत्ति/4/1438

त्रिलोकसार/832

 

सामान्‍य

वर्ष

विशेष

हरिवंशपुराण

 

सामान्‍य

वर्ष

विशेष

हरिवंशपुराण

1

57/89-90

25000 वर्ष

25000

 ×

1000 वर्ष

8349000

8374000

सप्तम नरक

महापुराण/ की अपेक्षा सभी सप्तम नरक में गये हैं।

2

58/89

25000 वर्ष

25000

 

100 वर्ष

7149900

 

षष्ठ नरक

3

59/-

12500 वर्ष

12500

 

90 वर्ष

5974910

 

षष्ठ नरक

4

60/68-69

700 वर्ष

1300

 

80 वर्ष

2997920

 

षष्ठ नरक

5

61/71

300 वर्ष

1250

125

70 वर्ष

998380

999505

षष्ठ नरक

6

65/177-178

250 वर्ष

250

 

60 वर्ष

64440

 

षष्ठ नरक

7

66/108

200 वर्ष

50

 

50 वर्ष

31700

 

पंचम नरक

8

67/151-154

100 वर्ष

300

 ×

40 वर्ष

11560

11860

चतुर्थ नरक

9

71/123

16 वर्ष

56

 

8 वर्ष

920

 

तृतीय नरक


5. नारायणों का वैभव

महापुराण/68/666,675-677 पृथिवीसुन्‍दरीमुख्‍या: केशवस्‍य मनोरमा:। द्विगुणाष्टसहस्राणि देव्‍य: सत्‍योऽभवन् श्रिय:।666। चक्रं सुदर्शनाख्‍यानं कौमुदीत्‍युदिता गदा। असि: सौनन्‍दकोऽमोघमुखी शक्तिं शरासनम्‍ ।675। शांग पंचमुख: पांचजन्‍य: शंखो महाध्‍वनि:। कौस्‍तुभं स्‍वप्रभाभारभासमानं महामणि:।676। रत्‍नान्‍येतानि सप्‍तैव केशवस्‍य पृथक्‍‍-पृथक्‍ । सदा यक्षसहस्रेण रक्षितान्‍यमितद्युते:।677। = नारायण के (लक्ष्‍मण के) पृथिवीसुन्‍दरी को आदि लेकर लक्ष्‍मी के समान मनोहर सोलह हज़ार पतिव्रता रानियाँ थीं।666। इसी प्रकार सुदर्शन नाम का चक्र, कौमुदी नामकी गदा, सौनन्‍द नाम का खड्‍ग, अमोघमुखी शक्ति, शाङ्‍र्ग नाम का धनुष, महाध्‍वनि करने वाला पाँच मुख का पांचजन्‍य नाम का शंख और अपनी कांति के भार से शोभायमान कौस्‍तुभ नाम का महामणि ये सात रत्‍न अपरिमित कांति को धारण करने वाले नारायण (लक्ष्‍मण) के थे और सदा एक-एक हज़ार यक्ष देव उनकी पृथक्‍‍-पृथक् रक्षा करते थे।675-677। ( तिलोयपण्णत्ति/4/1434 ); ( त्रिलोकसार/825 ); ( महापुराण/57/90-94 ); ( महापुराण/71/124-128 )।

6. नारायण की दिग्विजय

महापुराण/68/643-655 लंका को जीतकर लक्ष्‍मण ने कोटिशिला उठायी और वहाँ स्थित सुनन्‍द नाम के देव को वश किया।643-646। तत्‍पश्‍चात् गंगा के किनारे-किनारे जाकर गंगा द्वार के निकट सागर में स्थित मागधदेव को केवल बाण फेंक कर वश किया।647-650। तदनन्‍तर समुद्र के किनारे-किनारे जाकर जम्‍बूद्वीप के दक्षिण वैजयन्‍त द्वार के निकट समुद्र में स्थित ‘वरतनु देव’ को वश किया।651-652। तदनन्‍तर पश्चिम की ओर प्रयाण करते हुए सिन्‍धु नदी के द्वार के निकटवर्ती समुद्र में स्थित प्रभास नामक देव को वश किया।653-654। तत्‍पश्‍चात् ‍ सिन्‍धु नदी के पश्चिम तटवर्ती म्‍लेच्‍छ राजाओं को जीता।655। इसके पश्चात पूर्व दिशा की ओर चले। मार्ग में विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी के 50 विद्याधर राजाओं को वश किया। फिर गंगा तट के पूर्ववर्ती म्‍लेच्‍छ राजाओं को जीता।656-657। इस प्रकार उसने 16000 पट बन्‍ध राजाओं को तथा 110 विद्याधरों को जीतकर तीन खण्‍डों का आधिपत्‍य प्राप्त किया। यह दिग्विजय 42 वर्ष में पूरी हुई।658।

महापुराण/68/724-725 का भावार्थ – वह दक्षिण दिशा के अर्धभरत क्षेत्र के समस्‍त तीन खण्‍डों के स्‍वामी थे।

7. नारायण सम्‍बन्‍धी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1436 अणिदाणगदा सव्‍वे बलदेवा केसवा णिदाणगदा। उड्‍ढंगामी सव्‍वे बलदेवा केसवा अधोगामी।1436। = ...सब नारायण (केशव) निदान से सहित होते हैं और अधोगामी अर्थात् नरक में जाने वाले होते हैं।1436। ( हरिवंशपुराण/60/293 )

धवला 6/1,1-9,243/501/1 तस्‍स मिच्‍छत्ताविणाभाविणिदाणपुरंगमत्तादो। = वासुदेव (नारायण) की उत्‍पत्ति में उससे पूर्व मिथ्‍यात्‍व के अविनाभावी निदान का होना अवश्‍यभावी है। ( पद्मपुराण/20/214 )

पद्मपुराण/2/214 संभवंति बलानुजा:।214। = ये सभी नारायण बलभद्र के छोटे भाई होते हैं।

त्रिलोकसार/833 ...किण्‍हे तित्‍थयरे सोवि सिज्‍झेदि।833। = (अंतिम नारायण) कृष्‍ण आगे सिद्ध होंगे।

देखें शलाका पुरुष - 1.4 दो नारायणों का परस्‍पर में कभी मिलाप नहीं होता। एक क्षेत्र में एक काल में एक ही प्रतिनारायण होता है। उनके शरीर मूँछ, दाढ़ी से रहित तथा स्‍वर्ण वर्ण व उत्‍कृष्‍ट संहनन व संस्‍थान से युक्त होते हैं।

परमात्मप्रकाश टीका/1/42/42/5 पूर्वभवे कोऽपि जीवो भेदाभेदरत्‍नत्रयाराधनं कृत्‍वा विशिष्टं पुण्‍यबन्‍धं च कृत्‍वा पश्चादज्ञानभावेन निदानबन्‍धं करोति, तदनन्‍तरं स्‍वर्गं गत्‍वा पुनर्मनुष्‍यो भूत्‍वा त्रिखण्‍डाधिपतिर्वासुदेवो भवति। = अपने पूर्व भव में कोई जीव भेदाभेद रत्‍नत्रय की आराधना करके विशिष्ट पुण्‍य का बन्‍ध करता है। पश्चात् अज्ञान भाव से निदान बन्‍ध करता है। तदनन्‍तर स्‍वर्ग में जाकर पुन: मनुष्‍य होकर तीन खण्‍ड का अधिपति वासुदेव होता है।



नव प्रतिनारायण निर्देश

1. नाम व पूर्वभव परिचय

क्रम

महापुराण/ सर्ग/श्लो.

1. नाम निर्देश

2. कई भव पहिले

3. वर्तमान भव के नगर

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1413,519

2. त्रिलोकसार/828

3. पद्मपुराण/20/244-245

4. हरिवंशपुराण/60/291-292

5. महापुराण/ पूर्ववत्

महापुराण/ पूर्ववत्

पद्मपुराण/20/242-243

महापुराण/ पूर्ववत्

सामान्य

सं.

विशेष

नाम

नगर

पद्मपुराण

महापुराण

1

57/72,73

87-88,95

अश्वग्रीव

 

 

विशाखनंदि

राजगृह

अलका

अलका

2

58/63,90

तारक

 

 

विंध्यशक्ति

मलय

विजयपुर

भोगवर्धन

3

59/88,99

मेरक

5

मधु

चंडशासन

श्रावस्ती

नंदनपुर

रत्नपुर

4

60/70,83

मधुकैटभ

5

मधुसूदन

राजसिंह

मलय

पृथ्वीपुर

वाराणसी

5

61/74,83

निशुंभ

5

मधुक्रीड़

 

 

हरिपुर

हस्तिनापुर

6

65/180-189

बलि

5

निशुंभ

मंत्री

 

सूर्यपुर

चक्रपुर

7

66/109-111,125

प्रहरण

3

5

प्रह्लाद

बलीद्र

नरदेव

सारसमुच्चय

सिंहपुर

मंदरपुर

8

68/11-13,728

रावण

3

दशानन

 

 

लंका

लंका

9

71/123

जरासंघ

 

 

 

 

राजगृह

 


2. वर्तमान भव परिचय

क्रम

म.पु./सर्ग/श्लो.

4. तीर्थ

5. शरीर

6. उत्सेध

7. आयु

8. निर्गमन

तिलोयपण्णत्ति/4/1371

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1418

2. त्रिलोकसार/829

3. हरिवंशपुराण/60/310-311

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1422

2. त्रिलोकसार/830

3. हरिवंशपुराण/60/320-321

4. महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ 1438

2. त्रिलोकसार/ 832-833

3. महापुराण/ पूर्ववत्

वर्ण

संहनन

संस्थान

सामान्य

धनुष

विशेष

ह.पु.

सामान्य

वर्ष

विशेष

म.पु.

1

57/72-73

87-88

देखें तीर्थंकर

तिलोयपण्णत्ति ―स्वर्णवर्ण; महापुराण –×

समचतुरस्र संस्थान

वज्र ऋषभ नाराच संहनन

80

 

84 लाख वर्ष

 

सप्तम नरक

2

58/63,90

70

 

72 लाख

 

षष्टम नरक

3

59/88,99

60

 

60 लाख

 

षष्ठ (3 सप्तम)

4

60/70,83

50

40

30 लाख

 

षष्ठम नरक

5

61/74,83

45

55

10 लाख

 

षष्ठम नरक

6

65/180,189

29

26

65000

 

षष्ठम नरक

7

66/109-111,125

22

 

32000

 

पंचम नरक

8

68/11-13,728

16

 

12000

14000

चतुर्थ नरक

9

71/123

10

 

1000

 

तृतीय नरक


3. प्रति नारायणों संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1423 एदे णवपडिसत्तु णवाव हत्थेहिं वासुदेवाणं। णियचक्केहि रणेसुं समाहदा जंति णिरयखिदिं।1423।

ये नौ प्रतिशत्रु युद्ध में नौ वासुदवों के हाथों से निज चक्रों के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होकर नरक भूमि में जाते हैं।1423।

देखें शलाका पुरुष - 1.4,5 दो प्रतिनारायणों का परस्पर में मिलान नहीं होता। एक क्षेत्र में एक काल में एक ही प्रतिनारायण होता है। इनका शरीर दाढ़ी मूँछ रहित होता है।



नव नारद निर्देश

1. वर्तमान नारदों का परिचय

क्रम

1. नाम निर्देश

2. उत्सेध

3. आयु

4.वर्तमान काल

5. निर्गमन

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1469

2. त्रिलोकसार/ 834

3. हरिवंशपुराण/60/548

तिलोयपण्णत्ति/4/ 1471

हरिवंशपुराण/60/ 549

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1471

2. हरिवंशपुराण/60/549

1. त्रिलोकसार/ 835

2. हरिवंशपुराण/60/

549

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1470

2. त्रिलोकसार/ 835

3. हरिवंशपुराण/60/557

1

2

सामान्य

विशेष

1

भीम

 

उपदेश उपलब्ध नहीं है।

तात्कालिक नारायणों के तुल्य है।

उपदेश उपलब्ध नहीं है।

तात्कालिक नारायणों के तुल्य है।

नारायणों के समय में ही होते हैं।

नारायणोंवत् नरकगति को प्राप्त होते हैं।

महाभव्य होने के कारण परंपरा से मुक्त होते हैं।

2

महाभीम

 

3

रुद्र

 

4

महारुद्र

 

5

काल

 

6

महाकाल

 

7

दुर्मुख

चतुर्मुख

8

नरकमुख

नरवक्त्र

9

अधोमुख

उन्मुख


2. नारदों संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1470 रुद्दावइ अइरुद्दा पावणिहाणा हवंति सव्वे दे। कलह महाजुज्झपिया अधोगया वासुदेव व्व।1470।

ये सब अतिरुद्र होते हुए दूसरों को रुलाया करते हैं और पाप के निधान होते हैं। सभी नारद कलह एवं महायुद्ध प्रिय होने से वासुदेव के समान अधोगति अर्थात् नरक को प्राप्त हुए।1470।

पद्मपुराण/11/116-266 ब्रह्मरुचिस्तस्य कूर्मी नाम कुटुंबिनी (117) प्रसूता दारकं शुभं।145। यौवनं च...।153। ...प्राप्य क्षुल्लकचारित्रं जटामुकुटकुद्वहन् ...।155। कंदर्पकौत्कुच्यमौखर्य्यात्यंतवत्सल...।156। उवाचेति मरुत्वंच किं प्रारब्धमिदं नृप। हिंसन् ...प्राणिवर्गस्य द्वारं...।161। नारदोऽपि तत: कांश्चिन्मुष्टिमुद्गरताडनै:...।257। श्रुत्वा रावण: कोपमागत:...।264। व्यमोचयन् दयायुक्ता नारदं शत्रपंजरात् ।266। = ब्रह्मरुचि ब्राह्मण ने तापस का वेश धारण करके इसको (नारद को) उत्पन्न किया था। यौवन अवस्था में ही क्षुल्लक के व्रत लिये।153। कंदर्प व कौत्कुच्य प्रेमी था।156। मरुत्वान् यज्ञ में शास्त्रार्थ करने के कारण (160) पीटा गया।256। रावण ने उस समय रक्षा की।266। ( हरिवंशपुराण/42/14-23 ) ( महापुराण/67/359-455 )।

त्रिलोकसार/835 कलहप्पिया कदाइंधम्मरदा वासुदेव समकाला। भव्वा णिरयगदिं ते हिंसादोसेण गच्छंति।835। = ये नारद कलह प्रिय हैं, परंतु कदाचित् धर्म में भी रत होते हैं। वासुदेवों (नारायणों) के समय में ही होते हैं। यद्यपि भव्य होने के कारण परंपरा से मुक्ति को प्राप्त करते हैं, परंतु हिंसादोष के कारण नरक गति को जाते हैं।835। ( हरिवंशपुराण/60/549-550 )।



एकादश रुद्र निर्देश

1. नाम व शरीरादि परिचय

क्रम

1. नाम निर्देश

2. तीर्थ

3. उत्सेध

4. आयु

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1439-1441, 520-521

2. त्रिलोकसार/836

3. हरिवंशपुराण/60/534-536

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1444-1445

2. त्रिलोकसार/838

3. हरिवंशपुराण/60/535-538

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1446-1447

2. त्रिलोकसार/839

3. हरिवंशपुराण/60/539-545

 

 

त्रिलोकसार

 

 

 

1

भीमावलि

 

देखें तीर्थंकर

500 धनुष

83 लाख पूर्व

2

जितशत्रु

 

450 धनुष

71 लाख पूर्व

3

रुद्र

 

100 धनुष

2 लाख पूर्व

4

वैश्वानर

विशालनयन

90 धनुष

1 लाख पूर्व

5

सुप्रतिष्ठ

 

80 धनुष

84 लाख वर्ष

6

अचल

बल

70 धनुष

60 लाख वर्ष

7

पुंडरीक

 

60 धनुष

50 लाख वर्ष

8

अजितंधर

 

50 धनुष

40 लाख वर्ष

9

अजीतनाभि

जितनाभि

28 धनुष

20 लाख वर्ष

10

पीठ

 

24 धनुष

10 लाख वर्ष

(2-1 लाख वर्ष)

11

सात्यकि पुत्र

 

7 हाथ

69 वर्ष


2. कुमार काल आदि परिचय

क्रम

5. कुमार काल

6. संयमकाल

7. तप भंगकाल

8. निर्गमन

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1446-1467

2. हरिवंशपुराण/60/539-545

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1468

2. त्रिलोकसार/840

3. हरिवंशपुराण/60/546-547

1

2766666 पूर्व

2766668 पूर्व

2766666 पूर्व

सप्तम नरक

2

2366666 पूर्व

2366668 पूर्व

2366666 पूर्व

सप्तम नरक

3

66666 पूर्व

66668 पूर्व

66666 पूर्व

षष्ठ नरक

4

33333 पूर्व

33334 पूर्व

33333 पूर्व

षष्ठ नरक

5

28 लाख वर्ष

28 लाख वर्ष

28 लाख वर्ष

षष्ठ नरक

6

20 लाख वर्ष

20 लाख वर्ष

20 लाख वर्ष

षष्ठ नरक

7

1666666 वर्ष ( हरिवंशपुराण 1666668 वर्ष)

1666668 वर्ष ( हरिवंशपुराण 166666 वर्ष)

1666666 वर्ष

षष्ठ नरक

8

1333333 वर्ष

1333334 वर्ष

1333333 वर्ष

पंचम नरक

9

666666 वर्ष ( हरिवंशपुराण 666668 वर्ष)

666668 वर्ष ( हरिवंशपुराण 666666 वर्ष)

666666 वर्ष

चतुर्थ नरक

10

333333 वर्ष

333334 वर्ष

333333 वर्ष

चतुर्थ नरक

11

7 वर्ष

34 वर्ष

( हरिवंशपुराण 28 वर्ष)

28 वर्ष

( हरिवंशपुराण/34 वर्ष)

तृतीय नरक


3. रुद्रों संबंधी कुछ नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1440, 1442 पीढो सच्चइपुत्तो अंगधरा तित्थकत्ति-समएसु।...।1440। सव्वे दसमे पुव्वे रुद्दा भट्टा तवाउ विसयत्थं। सम्मत्तरयणरहिदा बुड्डा घोरेसु णिरएसुं।1442। = ये ग्यारह रुद्र अंगधर होते हुए तीर्थकर्ताओं के समयों में हुए हैं।1440। सब रुद्र दश में पूर्व का अध्ययन करते समय विषयों के निमित्त तप से भ्रष्ट होकर सम्यक्त्व रूपी रत्न से रहित होते हुए घोर नरक में डूब गए।1442।

हरिवंशपुराण/60/547 ...। भूर्यसंयमभाराणां रुद्राणां जन्मभूमय:। = उन रुद्रों के जीवन में असंयम का भार अधिक होता है, इसलिए नरकगामी होना पड़ता है।

त्रिलोकसार/841 विज्जाणुवादपढणे दिट्ठफला णट्ठ संजमा भव्वा। कदिचि भवे सिज्झंति हु गहिदुज्झिय सम्ममहियादो।841। = ते रुद्र विद्यानुवाद नामा पूर्व का पठन होतै इह लोक संबंधी फल के भोक्ता भए। बहुरि नष्ट भया है, अंगीकार किया हुआ संजम जिनका ऐसै है। बहुरि भव्य है, ते ग्रहण करके छोड़ा जो सम्यक्त्व ताके माहात्म्य से केतेइक पर्याय भये सिद्ध पद पावेंगे।



चौबीस कामदेव निर्देश

1. चौबीस कामदेवों का निर्देश मात्र

तिलोयपण्णत्ति/4/1472 कालेसु जिणवराणां चउवीसाणां हवंति चउवीसा। ते बाहुबलिप्पमुहा कंदप्पा णिरुवमायारा।1472। = चौबीस तीर्थंकरों के समयों में अनुपम आकृति के धारक, बाहुबलि प्रमुख 24 कामदेव होते हैं।

सोलह कुलकर निर्देश

1. वर्तमानकालिक कुलकरों का परिचय

क्रम

म.पु./3/श्लोक 229-232

1.नाम निर्देश

2. पिता

3. संस्थान

4. संहनन

5. वर्ण

6. उत्सेध

7. जंमांतराल

8. आयु

9. पटरानी

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गाथा

2. त्रिलोकसार/792-793

3. पद्मपुराण/3/75-88

4. हरिवंशपुराण/7/125-170

5. महापुराण/ पूर्ववत्

हरिवंशपुराण/7/125-170

 

हरिवंशपुराण/7/173

 

हरिवंशपुराण/7/173

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.

2. त्रिलोकसार/798

3. हरिवंशपुराण/7/174-175

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.

2. त्रिलोकसार/795

3. हरिवंशपुराण/7/171-172

4. महापुराण/ पूर्ववत्

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.

2. त्रिलोकसार/797

 

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गाथा

2. त्रिलोकसार/796

3. महापुराण/ पूर्ववत्

4. तिलोयपण्णत्ति/4/502-503

5. हरिवंशपुराण/7/148-170

1. तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.

तिलोयपण्णत्ति

 

अगला अगला कुलकर अपने से पूर्व-पूर्व का पुत्र है।

सभी सम चतुरस्र संस्थान से युक्त हैं।

सभी वज्र ऋषभ नाराच संहनन से युक्त हैं।

तिलोयपण्णत्ति

 

तिलोयपण्णत्ति

धनुष

तिलोयपण्णत्ति

तिलोयपण्णत्ति

दृष्टि सं.1

प्रमाण सं.

दृष्टि सं.2

तिलोयपण्णत्ति

 

1

63-72

421

प्रतिश्रुति

 

×

422

1800

421

तृ.काल में 1/8पल्य, शेष में

422

1/10 पल्य

3-5

1/10 पल्य

422

स्वयंप्रभा

2

76-89

430

सन्मति

430

स्वर्ण

431

1300

430

1/80 पल्य

431

1/100 पल्य

3-5

अमम

431

यशस्वती

3

90-101

439

क्षेमंकर

440

स्वर्ण

440

800

439

1/800 पल्य

440

1/1000 पल्य

3-5

अटट

440

सुनंदा

4

102-106

444

क्षेमंधर

446

स्वर्ण

445

775

444

1/8000 पल्य

445

1/10,000 पल्य

3-5

त्रुटित

446

विमला

5

107-111

448

सीमंकर

449

स्वर्ण

449

750

448

1/80,000 पल्य

449

1/1 लाख पल्य

3-5

कमल

450

मनोहरी

6

112-115

453

सीमंधर

 

×

454

725

453

1/8लाख पल्य

454

1/10 लाख पल्य

3-5

नलिन

454

यशोधरा

7

116-119

457

विमल वाहन1

458

स्वर्ण

458

700

457

1/80लाख पल्य

458

1/1 करोड़ पल्य

3-5

पद्म

458

सुमति

8

120-124

460

चक्षुष्मान्

 

×*

461

675

460

1/8करोड़ पल्य

461

1/10 करोड़ पल्य

3-5

पद्मांग

462

धारिणी

9

125-128

465

यशस्वी

466

स्वर्ण*

466

650

465

1/80करोड़ पल्य

466

1/100 करोड़ पल्य

3-5

कुमुद

467

कांत माला

10

129-133

469

अभिचंद्र

471

स्वर्ण

470

625

469

1/800 करोड़ पल्य

470

1/1000 करोड़ पल्य

3-5

कुमुदांग

467

श्रीमती

11

134-138

475

चंद्राभ

476

स्वर्ण*

476

600

475

1/8000 करोड़ पल्य

476

1/10,000 करोड़ पल्य

3-5

नयुत

477

प्रभावती

12

139-145

482

मरुद्देव

484

स्वर्ण

483

575

482

1/80000 करोड़ पल्य

483

1/1 लाख करोड़ पल्य

3-5

नयुतांग

484

सत्या

13

146-151

489

प्रसेनजित्

490

स्वर्ण*

490

550

489

1/8लाख करोड़ पल्य

490

1/10 लाख करोड़ पल्य

3-5

पर्व

491

अमितमति

14

152-163

494

नाभिराय

495

स्वर्ण

495

525

494

1/80 लाख करोड़ पल्य

491

1/100 लाख करोड़ पल्य

3-5

1 करोड़ पूर्व

495

मरुदेवी

1/8 पल्य

किंचिदून 1 पल्य

15

232

 

ऋषभ2

 

 

 

 

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―

देखो तीर्थंकर

―

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16

232

 

भरत3

 

 

 

 

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―

देखो चक्रवर्ती

―

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नोट―1. पद्म पुराण में विमलवाहन नाम नहीं दिया है और यशस्वी से आगे ‘विपुल’ नाम देकर कमी पूरी कर दी है।

2. महापुराण की अपेक्षा ऋषभ व भरत की गणना भी कुलकरों में करके उनका प्रमाण 16 दर्शाया गया है।

* त्रिलोकसार की अपेक्षा नं.8 व 9 का वर्ण श्याम तथा सं.11 व 13 का धवल है। हरिवंशपुराण की अपेक्षा 8,9,13 का श्याम तथा सं. का धवल है।


क्रम

ति.प./4/मा.

म.पु./3/श्लो.

10. नाम

11. दंड विधान

12. तात्कालिक परिस्थिति

13. उपदेश

प्रमाण देखो पीछे

1. तिलोयपण्णत्ति/4/452-474

2. त्रिलोकसार/498

3. हरिवंशपुराण/7/141-176

4. महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/ पूर्ववत्

2. त्रिलोकसार/799-802

3. पद्मपुराण/3/75-88

4. हरिवंशपुराण/7/125-170

4. महापुराण/ पूर्ववत्

1. तिलोयपण्णत्ति/ पूर्ववत्

2. त्रिलोकसार/799-802

3. पद्मपुराण/3/75-88

4. हरिवंशपुराण/7/125-170

4. महापुराण/ पूर्ववत्

1

423-428

63-75

प्रतिश्रुति

तिलोयपण्णत्ति/452 हा,

हा=हाय; मा=मतकर; धिक्=धिक्कार

चंद्र सूर्य के दर्शन से प्रजा भयभीत थी 

तेजांग जाति के कल्पवृक्षों की कमी के कारण अब दीखने लगे हैं। यह पहले भी थे पर दीखते न थे। इस प्रकार उनका परिचय देकर भय दूर करना।

2

432-438

76-89

सन्मति

तिलोयपण्णत्ति/452 हा,

तेजांग जाति के कल्पवृक्षों का लोप। अंधकार व तारागण का दर्शन।

अंधकार व ताराओं का परिचय देकर भय दूर करना।

3

441-443

90-101

क्षेमंकर

तिलोयपण्णत्ति/452 हा,

व्याघ्रादि जंतुओं में क्रूरता के दर्शन।

क्रूर जंतुओं से बचकर रहना तथा गाय आदि जंतुओं को पालने की शिक्षा।

4

446-447

107-111

क्षेमंधर

तिलोयपण्णत्ति/452 हा,

व्याघ्रादि द्वारा मनुष्यों का भक्षण।

अपनी रक्षार्थ दंड आदि का प्रयोग करने की शिक्षा।

5

451-453

112-115

सीमंकर

तिलोयपण्णत्ति/452 हा,

कल्प वृक्षों की कमी के कारण उनके स्वामित्व पर परस्पर में झगड़ा।

कल्पवृक्षों की सीमाओं का विभाजन।

6

455-456

116-119

सीमंधर

तिलोयपण्णत्ति/474 हा,मा,

वृक्षों की अत्यंत हानि के कारण कलह में वृद्धि।

वृक्षों को चिह्नित करके उनके स्वामित्व का विभाजन।

7

459

120-124

विमलवाहन

तिलोयपण्णत्ति/474 हा

गमनागमन में बाधा का अनुभव।

अश्वारोहण व गजारोहण की शिक्षा तथा वाहनों का प्रयोग।

8

462-463

125-128

चक्षुष्मान्

तिलोयपण्णत्ति/474 हा

अबसे पहले अपनी संतान का मुख देखने से पहले ही माता-पिता मर जाते थे। पर अब संतान का मुख देखने के पश्चात् मरने लगे।

संतान का परिचय देकर भय दूर करना।

9

467-468

129-133

यशस्वी

तिलोयपण्णत्ति/474 हा

बालकों का नाम रखने तक जीने लगे। बालकों का बोलना व खेलना देखने तक जीने लगे।

बालकों का नामकरण करने की शिक्षा बालकों को बोलना व खेलना सिखाने की शिक्षा।

10

472-473

134-138

अभिचंद्र

तिलोयपण्णत्ति/474 हा

पुत्र-कलत्र के साथ लंबे काल तक जीवित रहने लगे। शीत वायु चलने लगी।

सूर्य की किरणों से शीत निवारण की शिक्षा।

11

478-481

134-138

चंद्राभ

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

मेघ, वर्षा, बिजली, नदी व पर्वत आदि के दर्शन।

नौका व छातों का प्रयोग विधि तथा पर्वत पर सीढ़ियाँ बनाने की शिक्षा।

12

484-486

139-145

मरुद्देव

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

बालकों के साथ जरायु की उत्पत्ति।

जरायु दूर करने के उपाय की शिक्षा।

13

491

146-151

प्रसेनजित्

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

1. नाभिनाल अत्यंत लंबा होने लगा।

1.नाभिनाल काटने के उपाय की शिक्षा।

14

496-500

152-163

नाभिराय

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

2. कल्पद्रुमों का अत्यंत अभाव। औषधि, धान्य व फलों आदि की उत्पत्ति।

2.औषधियों व धान्य आदि की पहचान व विवेक कराया तथा उनका व दूध आदि का प्रयोग करने की शिक्षा दी।

15

 

 

ऋषभदेव

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

स्व जात धान्यादि में हानि। मनुष्यों में अविवेक की उत्पत्ति।

कृषि आदि षट् विद्याओं की शिक्षा। वर्ण व्यवस्था की स्थापना।

16

 

 

भरत

त्रिलोकसार हा, मा, धिक्

 

 


2. कुलकर के अपर नाम व उनका सार्थक्य

तिलोयपण्णत्ति/4/507-509 णियजोगसुदं पढिदा खीणे आउम्हि ओहिणाण जुदा। उप्पज्जिदूण भोगे केई णरा ओहिणाणेणं।507। जादिभरणेण केई भोगमणुस्साण जीवणोवायं। भासंति जेण तेणं मणुणो भणिदा मुणिंदेहिं।508। कुलधारणादु सव्वे कुलधरणामेण भुवणविक्खादा। कुलकरणम्मि य कुसला कुल करणामेण सुपसिद्धा।509। = अपने योग्य श्रुत को पढ़कर इन राजकुमारों में से कितने ही आयु के क्षीण होने पर अवधिज्ञान के साथ भोगभूमि में मनुष्य उत्पन्न होकर अवधिज्ञान से और कितने ही जाति स्मरण से भोगभूमिज मनुष्यों को जीवन के उपाय बतलाते हैं, इसलिए मुनींद्रों के द्वारा ये मनु कहे जाते हैं।507-508। ये सब कुलों को धारण करने से कुलधर और कुलों के करने में कुशल होने से ‘कुलकर’ नाम से भी लोक में प्रसिद्ध हैं।509। ( महापुराण/3/210-211 )।

3. पूर्वभव संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/504 एदे चउदस मणुओ पदिसुदिपहुदी हु णाहिरायंता। पुव्व भवम्मि विदेहे राजकुमारा महाकुले जादा।504। = प्रतिश्रुति को आदि लेकर नाभिराय पर्यंत ये चौदह मनु पूर्वभव में विदेह क्षेत्र के भीतर महाकुल में राजकुमार थे।504।

4. पूर्वभव में संयम तप आदि संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/505-506 कुसला दाणादीसुं संजमतवणाणवंतपत्ताणं। णियजोग्ग अणुट्ठाणा मद्दवअज्जवगुणेहिं संजुत्ता।505। मिच्छत्तभावणाए भोगाउं बंधिऊण ते सव्वे। पच्छा खाइयसम्मं गेण्हंति जिणिंदचलणमूलम्हि।506। = वे सब संयम तप और ज्ञान से युक्त पात्रों के लिए दानादिक के देने में कुशल, अपने योग्य अनुष्ठान से युक्त, और मार्दव, आर्जव गुणों से सहित होते हुए पूर्व में मिथ्यात्व भावना से भोगभूमि की आयु को बाँधकर पश्चात् जिनेंद्र भगवान् के चरणों के समीप क्षायिक सम्यक्त्व को ग्रहण करते हैं।505-506। ( त्रिलोकसार/794 )।

5. उत्पत्ति व संख्या आदि संबंधी नियम

तिलोयपण्णत्ति/4/1569 वाससहस्से सेसे उप्पत्ती कुलकराण भरहम्मि। अथ चोद्दसाण ताणं कमेण णामाणि वोच्छामि। = इस काल में (पंचम काल प्रारंभ होने में) 1000 वर्षों के शेष रहने पर भरत क्षेत्र में 14 कुलकरों की उत्पत्ति होने लगती है। (कुछ कम एक पल्य के 8वें भाग मात्र तृतीयकाल के शेष रहने पर प्रथम कुलकर उत्पन्न हुआ।–देखें शलाका पुरुष - 9.1)।

महापुराण/3/232 तस्मान्नाभिराजश्चतुर्दश:। वृषभो भरतेशश्च तीर्थचक्रभृतौ मनू।232। = चौदहवें कुलकर नाभिराय थे। इनके सिवाय भगवान् ऋषभदेव तीर्थंकर भी थे और मनु भी, तथा भरत चक्रवर्ती भी थे और मनु भी थे।

त्रिलोकसार/794 ...खइयसंदिट्ठी। इह खत्तियकुलजादा केइज्जाइब्भरा ओही।794। = क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव कुलकर उपजते हैं। और भी क्षत्रिय कुल में जन्मते हैं। (यहाँ क्षत्रिय कुल का भावी में वर्तमान का उपचार किया है।)। ते कुलकर केइ तौ जाति स्मरण संयुक्त हैं, और कोई अवधिज्ञान संयुक्त है।



भावि शलाका पुरुष निर्देश

1. कुलकर चक्रवर्ती व बलदेव

क्रम

1. कुलकर

2. चक्रवर्ती

3. बलदेव

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1570-1571

2. हरिवंशपुराण/60/555-557

3. महापुराण/76/463-466

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1587-1588

2. त्रिलोकसार/877-878

3. हरिवंशपुराण/60/563-565

4. महापुराण/76/482-484

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1589-1590

2. त्रिलोकसार/878-879

3. हरिवंशपुराण/60/568-569

4. महापुराण/76/485-486

सामान्य

प्रमाण सं.

विशेष

सामान्य

प्रमाण सं.

विशेष

1

कनक

 

 

भरत

चंद्र

 

 

2

कनकप्रभ

 

 

दीर्घदंत

महाचंद्र

 

 

3

कनकराज

 

 

मुक्तदंत(3 जन्मदत्त)

चंद्रधर

4

चक्रधर

4

कनकध्वज

 

 

गूढदंत

वरचंद्र

2,3,4

हरिचंद्र

5

कनकपुंख

2,3

कनकपंगव

श्रीषेण

सिंहचंद्र

 

 ×

6

नलिन

 

 

श्रीभूति

हरिचंद्र

2,4

वरचंद्र

7

नलिनप्रभ

 

 

श्रीकांत

श्रीचंद्र

2,4

पूर्णचंद्र

8

नलिनराज

 

 

पद्म

पूर्णचंद्र

2

शुभचंद्व

9

नलिनध्वज

 

 

महापद्म

सुचंद्र

2,4

श्रीचंद्र

10

नलिनपुंख

2,3

नलिनपंगव

चित्रवाहन

 

3

बालचंद्र

11

 

3

पद्म

विमलवाहन

(4 विचित्रवाहन)

 

 

 

12

पद्मप्रभ

 

 

 

 

 

 

13

पद्मराज

 

 

अरिष्टसेन

 

 

 

14

पद्मध्वज

 

 

नोट― त्रिलोकसार व हरिवंशपुराण में नामों के क्रम में अंतर है। हरिवंशपुराण में 5वाँ वरचंद्र नाम नहीं दिया है। अंत में बालचंद्र नाम देकर कमी पूरी कर दी है।

15

पद्मपुंख

2,3

पद्मपुंगव

16

 

3

महापद्म


2. नारायणादि परिचय

क्रम

नारायण

प्रतिनारायण

रुद्र

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1590-1591

2. त्रिलोकसार/879-880

3. हरिवंशपुराण/60/566-567

4. महापुराण/76/487-488

1. तिलोयपण्णत्ति/4/1592

2. त्रिलोकसार/880

3. हरिवंशपुराण/60/569-570

 

हरिवंशपुराण/60/571-572 े

सामान्य

प्रमाण सं.

विशेष

1

नंदी

 

 

श्रीकंठ

प्रमद

2

नंदिमित्र

 

 

हरिकंठ

संमद

3

नंदिषेण

3

नंदिन

नीलकंठ

हर्ष

4

नंदिभूति

3

नंदि भूतिक

अश्वकंठ

प्रकाम

5

बल

2

अचल

सुकंठ

कामद

6

महाबल

 

 

शिखिकंठ

भव

7

अतिबल

 

 

अश्वग्रीव

हर

8

त्रिपृष्ठ

 

 

हयग्रीव

मनोभव

9

द्विपृष्ठ

 

 

मयूरग्रीव

मार 

 

नोट― हरिवंशपुराण में इसके क्रम में कुछ अंतर है।

 

काम

 

 

अंगज


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पुराण कोष से



प्रत्येक कल्पकाल के तिरेसठ महापुरुष। वे हैं― चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलभद्र। महापुराण 1.19-20, पद्मपुराण 20.214, 242, हरिवंशपुराण 54.59-60, 60.286-293, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.105-116


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