चेतन प्राणी चेतिये हो,: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: चेतन प्राणी चेतिये हो,<br> अहो भवि प्रानी चेतिये हो, छिन छिन छीजत आव।।टेक ।...) |
(No difference)
|
Revision as of 11:47, 10 February 2008
चेतन प्राणी चेतिये हो,
अहो भवि प्रानी चेतिये हो, छिन छिन छीजत आव।।टेक ।।
घड़ी घड़ी घड़ियाल रटत है, कर निज हित अब दाव ।।चेतन. ।।
जो छिन विषय भोगमें खोवत, सो छिन भजि जिन नाम ।
वातैं नरकादिक दुख पैहै, यातैं सुख अभिराम ।।चेतन. ।।१ ।।
विषय भुजंगमके डसे हो, रुले बहुत संसार ।
जिन्हैं विषय व्यापै नहीं हो, तिनको जीवन सार ।।चेतन. ।।२ ।।
चार गतिनिमें दुर्लभ नर भव, नर बिन मुकति न होय ।
सो तैं पायो भाग उदय हों, विषयनि-सँग मति खोय ।।चेतन. ।।३ ।।
तन धन लाज कुटुँब के कारन, मूढ़ करत है पाप ।
इन ठगियों से ठगायकै हो, पावै बहु दुख आप ।।चेतन. ।।४ ।।
जिनको तू अपने कहै हो, सो तो तेरे नाहिं ।
कै तो तू इनकौं तजै हो, कै ये तुझे तज जाहिं ।।चेतन. ।।५ ।।
पलक एककी सुध नहीं हो, सिरपर गाजै काल ।
तू निचिन्त क्यों बावरे हो, छांडि दे सब भ्रमजाल ।।चेतन. ।।६ ।।
भजि भगवन्त महन्तको हो, जीवन-प्राणअधार ।
जो सुख चाहै आपको हो, `द्यानत' कहै पुकार ।।चेतन. ।।७ ।।